कर्तव्य व अधिकार

प्रिय पाठक गण,
        सादर नमन, 
 आप सभी को मंगल प्रणाम, प्रवाह की इस अद्भुत यात्रा में आप
सभी का स्वागत, आइये, आज हम संवाद करेंगे,
       कर्तव्य  व अधिकार पर, मूल ग्रंथ श्री गीता जी में एक वाक्य 
हैं, "कर्मण्येवाधिकारस्तु , मा फलेषु कदाचन।
        इसमें श्री कृष्ण भगवान स्वयं यह कह रहे हैं, मनुष्य को अपने मूल कर्तव्य कर्म का निर्वहन अवश्य करना चाहिये।
      आपका जो भी मूल कर्तव्य जो आपको मिला है ,आपने धारण किया है, उसे अपनी संपूर्ण ईमानदारी से निर्वहन करिये
     मान लीजिए कोई दुकानदार है, वह ईमानदारी पूर्वक सभी से एक सा  व्यवहार कर अपनी कमाई करें।
     इंजीनियर उसका काम पूर्ण ईमानदारी से करें, जो अधिकारी गण है वह भी अपना कार्य है, वह संपूर्ण ईमानदारी से करें।
    इस प्रकार समाज का हर वर्ग अपने-अपने मूल कर्तव्य का 
पूर्ण ईमानदारी से अगर निर्वहन करता है, तो फिर स्थितियां तेजी से सुधरेगी।
     एक राजनेता भी अपना राजनीतिक धर्म, ईमानदारी से निर्वहन करें, इस प्रकार समाज का हर वर्ग अगर अपनी अपनी जगह पर 
पूर्ण ईमानदारी से बर्ताव करें, अपने कर्तव्यों का  निर्वहन करें,
तो अधिकार तो स्वत: ही मिल जाएंगे।
     इसी प्रकार एक अध्यापक का कर्म शिक्षा देना है, छात्र का कर्म पूर्ण निष्ठा से पढ़ना है।
     इस प्रकार जब हम सभी अपने-अपने नियत कर्मों को, जो हमने स्वयं चुनाव किया है, उनका पूर्ण ईमानदारी पूर्वक निर्वहन करें, यानी अपने निज कर्तव्य को पूर्ण ईमानदारी पूर्वक करने का प्रयास करें।
      जो भी मनुष्य इस प्रकार से आचरण करते हैं, अपने कर्तव्य का निर्वहन करते हैं, वे परमात्मा के निकट ही है, उसकी अनुकंपा उन सभी पर बरस रही है। 
     अपना कर्तव्य अगर हम ईमानदारी पूर्वक करते हैं, तो अधिकार हमें स्वत: ही प्राप्त हो जाते हैं।
      करो फल से कोई नहीं बचता, संशय रहित होकर पूर्ण निष्ठा पूर्वक अपने कर्म को करना ही ईश्वर की पूजा करना है।
      उसे सर्वव्यापी प्रभु ने सब की व्यवस्था की है, हम मनुष्य तो अपनी बुद्धिमत्ता से अपनी पूर्ति कर ही लेते हैं। 
      वह परम सृष्टा तो प्राणी मात्र का परिपालन कर रहा है, सभी का परिपालन यह सृष्टि करती है।
   वह निराकार सत्ता सभी का ध्यान रखती है, वही सूक्ष्म रूप में सभी का निर्वहन कर रही है, वही साकार रूप में सभी में समाहित है।
     जो भी मनुष्य अपने कर्तव्य कर्म को विचार कर ईमानदारी पूर्वक करते हैं, उन्हें इसका अच्छा फल ही प्राप्त  होगा, इसमें कोई संशय  नहीं।
       वर्तमान समय में अधिकांश व्यक्ति अपने कर्म  में  निष्ठावान नहीं है, और फल उन्हे  सारे चाहिये, आप अपने कर्तव्य पूरे करिये,
अधिकार स्वत: ही आपको प्राप्त होगा ।
विशेष:- कर्तव्य को पूर्ण निष्ठा से करिये, आपको अपने अधिकार स्वत: ही मिल जायेंगें, यही कर्मयोग है, हर काल में यही सत्य भी है, युवा वर्ग वह सभी वर्गों से मेरा अनुरोध है, इस बात के सही मर्म को समझें वह गीता जी के सिद्धांत को जीवन में उतार लें। 
आपका अपना 
सुनील शर्मा 
जय भारत 
जय हिंद

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