सादर नमन,
आप सभी को मंगल प्रणाम,
प्रवाह की इस अद्भुत यात्रा में आप सभी का हृदय से स्वागत
है।
मां सरस्वती को प्रणाम, उनकी कृपा सदा रहें।
यह संपूर्ण विश्व अनेक प्रकार की विभिन्न ऊर्जा से परिपूरित है, उन विभिन्न ऊर्जाओं में से परमपिता परमेश्वर द्वारा प्रदत्त सात्विक ऊर्जा निसंदेह ही सर्वश्रेष्ठ है, सात्विक ऊर्जा वह ऊर्जा है,
सात्विक ऊर्जा सदैव सत्य का साथ देने वाली है।
प्रकृति से से हमें तीन गुण प्राप्त होते हैं, सात्विक, राजस, तामस। क्रमशः सात्विक ,राजस, तामस इन तीन गुणों के भीतर ही यह सारी सृष्टि समाहित है।
पर इन तीन गुणों से भी परे जो अविनाशी परमात्मा है, जो इस सृष्टि का रचयिता है, जिसे हम परमेश्वर भी कहते हैं, कुछ लोग नहीं मानते ईश्वर है, कुछ मानते हैं ईश्वर है।
इन दोनों ही मानने वाले व न मानने वाले से उसे परम सत्ता को कोई फर्क नहीं पड़ता, क्योंकि वह इन सबसे अलिप्त है, वह सृष्टि चक्र का पालन करते हुए भी किसी से लिप्त नहीं है।
वह परमपिता परमात्मा है, जिसका जैसा भाव व कर्म होगा,
अंततः वैसा ही परिणाम अपने -आप ही प्राप्त होगा।
इसको हम जरा इस प्रकार समझे, हम भगवान के मंदिर जाते हैं, नित्य उनके मनोहारी दर्शन करते हैं, उसे अपने चित्त के भीतर उतारते हैं, तो हम मंदिर सही रूप में जा रहे हैं, अगर हम वहां भी कुछ मांगने जा रहे हैं, वह भी मिलेगा, मगर अहो भाव से केवल
कृतज्ञता व्यक्त करने जा रहे हैं, तेरी बड़ी कृपा है, धन्यवाद कर रहे हैं, तो आंतरिक शांति हमें प्राप्त होगी।
मंदिर में प्रभु के दर्शन करने के उपरांत अगर अहो भाव जागृत हो, प्रभु सब तेरी कृपा है, तो निश्चित ही हमारी दिशा सही है, वह दशा भी बदलेगी ही।
अहो भाव जीवन में जागृत नहीं होता, हम उसे रचयिता को
धन्यवाद नहीं देते, उसकी परम कृपा को जीवन में नित्य अनुभव नहीं करते तो फिर हमारा मंदिर में नित्य जाना भी सार्थक नहीं है।
और अगर मंदिर में नहीं भी जाते, पर परमात्मा का नित्य अनुभव अपने मनमंदिर में करते हैं, तो वह अधिक श्रेष्ठ है।
मानसिक परिवर्तन यानी जैसी दृष्टि ,वैसी सृष्टि, भले मानुष को सब भले ही लगते हैं, चोर को सब चोर नजर आते हैं, इस प्रकार भगवान के परम भक्तों को यह सृष्टि सुंदर नजर आती है,
क्योंकि उनके आंतरिक परिवर्तन हो चुका है।
आंतरिक परिवर्तन ही सबसे श्रेष्ठ है, वह अगर धीरे-धीरे भी हो रहा है, तो उसे परमात्मा की कृपा जाने, उसने आपको अंतर्दृष्टि प्रदान कर दी है, अपनी राह पर बुला लिया है।
निश्चित ही हम सांसारिक कार्य करें, सबसे मिले जूले, पर परमात्मा के नित्य सुमिरन में रहें, अहो भाव से उन्हें याद करते रहे,
फिर जब वह शरण में ले लेता है, परम शांति के पथ पर अग्रसर कर देता है। आपकी भी मनोदशा प्रभु का स्पर्श पाकर बदलें, अन्य शुभकामनाओं के साथ वाणी व लेखनी को विराम।
विशेष:- जैसी दृष्टि, वैसी सृष्टि, अगर हम अपनी दृष्टि नहीं बदलते,
तो कोई भी कार्य करें, वह चाहे सांसारिक ही क्यों न हो,
हमें हर और बाधा नजर आयेंगी, दृष्टि बदलने पर वही
बाधाएं मंजिल तक पहुंचने का मार्ग स्वयं नजर आयेंगी।
आपका अपना
सुनील शर्मा
जय भारत
जय हिंद।
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