सादर नमन,
आप सभी को मंगल प्रणाम, प्रभाकर इस मंगलमय धारा में आप सभी का स्वागत है,
आई आज जानते हैं हमारे द्वितीय राष्ट्रपति डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी के बारे में जिनका जन्मदिन आज से 3 दिन बाद 5 सितंबर को आ रहा है, जिसे हम शिक्षक दिवस के रूप में भी मनाते हैं।
दिनांक 5 सितंबर को हमारे देश के राष्ट्रपति डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी का
जन्मदिन है, जो हमारे देश के द्वितीय राष्ट्रपति भी रहे हैं, मगर उनकी ख्याति एक शिक्षाविद के रूप में भी रही है, उनका जन्म तमिलनाडु
के तिरुतनी ग्राम में 5 सितंबर 1881 को हुआ था ।
वे भारत के एक महान राजनीतिज्ञ दार्शनिक और और शिक्षा से जुड़े हए एक महान व्यक्तित्व थे।
उन्होंने अपना जीवन और कैरियर एक लेखक के रूप में बिताया और अपने धर्म का वर्णन बचाव और प्रचार करने का प्रयास किया, जिसे उन्होंने हिंदूधर्म, वेदांत और आत्मा के धर्म के रूप में विभिन्न रूपों मे
संदर्भित किया।
वह हिंदू धर्म के दार्शनिक पक्ष को भली भांति समझते थे, वे भारतीय संस्कृति के मूल्यों के जानकार थे, वह केवल हमारे देश के राष्ट्रपति ही नहीं, वरुण एक शानदार व्यक्तित्व के मालिक भी थे, जिन्होंने अपना संपूर्ण जीवन पूर्ण ईमानदारी से जिया, वे मानवीय मूल्यों के सदा पक्षधर रहे।
वे अपने आप को एक शिक्षक के रूप में ही रखना चाहते थे, अतः उन्होंने अपने छात्रों से आग्रह किया कि उनका जन्मदिन शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाये।
आज हमारे देश में कुल ऐसे शिक्षकों की जो स्वयं भी आचरणशील हो, शिक्षक अपने शिष्यों को इस प्रकार गढ़े कि वह भारत के वर्तमान को भविष्य को उज्जवल दिशा दें, समझ में जब आज कथनी व करनी में अंतर देखने को मिलता है, तब इस बात की और अधिक आवश्यकता हमें महसूस होती है, शिक्षक ऐसे होने चाहिए जो बालक बालिकाओं को सर्वांगीण विकास की ओर लेकर जाये।
एक शिक्षक की भूमिका अपने आप में बहुत महत्वपर्ण है, क्योंकि यहीं से वह ऐसे शिष्य तैयार कर सकता है, जो मानवीय मूल्यों से भी ओत प्रोत हो, शिक्षा का मूल उद्देश्य किसी भी व्यक्ति का सर्वांगीण विकास ही है,
शिक्षा का जो मुख्य उद्देश्य है, वह विश्व नागरिक के रूप में हमारी भूमिका कैसी हो,
हमारा भारतीय दर्शन शुरू से ही इस बात की हमें प्रेरणा प्रदान करता है , वर्तमान समय में
इस पर गहन अध्ययन की आवश्यकता है, भारत विश्व गुरु के पद पर आसीन रहा है, वह उसकी आध्यात्मिक शक्ति पूंज के कारण ही,
समय-समय पर यहां ऐसे महान व्यक्तित्व अवतरित होते रहे हैं, उन्ही महान व्यक्तित्व में से एक हमारे द्वितीय राष्ट्रपति रह चुके डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी भी है, उनका समर्पित जीवन हमें हमेशा प्रेरणा प्रदान करता रहेगा।
उनके पति हमारी सच्ची श्रद्धांजलि तो यही होगी ,अगर हम उनके आदर्शों को कुछ रूप में भी आत्मसात कर सके, वे एक विनोद प्रिय शिक्षक थे , उनका यह मानना था थोड़ा बहुत हास्य विनोद भी जरूरी है, अत्यधिक गंभीरता से वह छात्रों से उतनी अंतरंगता से
नहीं जुड़ सकते, और उन्हें कोई दिशा देने के लिए उनसे जुड़ना अनिवार्य है।
एक शिक्षक का कार्य अपने शिष्यों में इस प्रकार का भाव स्थापित करने का प्रयास होना चाहिए क्यों स्वयं के लिए फिर परिवार व समाज के लिए भी कार्य कर सके।
अगर शिक्षक नई पीढ़ी में धैर्य, अनुशासन
समन्वय, सहकार, आपसी प्रेम , दायित्व बोध
इन गुणों को विकसित कर सके, तो इस देश में एक बहुत बड़ा बदलाव आ सकता है।
क्योंकि इसी नई पीढ़ी मे से कोई राजनेता,
कोई डॉक्टर, कोई इंजीनियर , कोई
अधिकारी, कोई व्यापारी, इस प्रकार समाज के सभी विभिन्न वर्गों में जो भी कार्य करेंगे,
अगर शिक्षक ने उनमें एक अच्छा भाव विकसित कर दिया, तो संपूर्ण समाज में बदलाव आ सकता है, इस मामले में एक शिक्षक की भूमिका सबसे अधिक महत्वपूर्ण हो जाती है, और यही हमारी हमारे भूतपूर्व राष्ट्रपति डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि भी होगी।
विशेष :- अगर हम नई पीढ़ी में उच्चतम मूल्यों के प्रतिबद्धता उत्पन्न करने में कामयाब रहे, तो भारत एक बार पूर्ण और अधिक सशक्तता की ओर अग्रसर होगा, अगर हम इस नई पीढ़ी को ईमानदारी का अध्याय पढ़ सके तो हमारे देश में आमूल चूल परिवर्तन की उम्मीद हम कर सकते हैं, इस मामले में हमारे शिक्षकों की भूमिका सबसे अधिक महत्वपूर्ण हो जाती है।
क्योंकि इन संस्कारों की प्रेरणा वही प्रदान करने वाले होते हैं।
आपका अपना
सुनीलशर्मा
जय भारत,
जय हिंद
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