वर्तमान में श्रीमद् भागवत गीता

प्रिय पाठक गण,
     सादर नमन,
आप सभी को मंगल प्रणाम, 
      आज प्रवाह में मद् भागवत गीता का 
वर्तमान समय में क्या महत्व हैं,  इस बात पर हम चर्चा करेंगे। 
     भगवान श्रीकृष्ण के श्री मुख से निकली वाणी आज तो और भी प्रासंगिक है, यह आपको बताती है, कर्म के निर्धारण के बारे में।
      निष्काम कर्मयोग की शिक्षा देती है, व अपने-अपने कर्म क्षेत्र में आप पूर्ण ईमानदारी से कार्यरत रहें, यह बोध प्रदान करती है।
     अपना जो भी कर्म हम कर रहे हैं, वह छोटा या बड़ा न होकर हम कितनी निष्ठा पूर्वक उस  कर्म को करते हैं, यही सबसे अधिक महत्वपूर्ण घटक है। 
     इसका सरल निरूपण यह है, जो भी व्यक्ति जिस भी कार्य को कर रहा है, वह जितनी निष्ठा व लगन से उस कार्य को करेगा,
निश्चित ही उतने ही बेहतर परिणाम उसे प्राप्त  होंगे, इसमें कुछ भी संशय नहीं है।
    कर्म हमारा कैसा हो? जो भी कर्म हम करें,
उसका आधार केवल भौतिक मूल्य न होकर 
उसे कर्म को पूर्ण समर्पण भाव से करना, यह अधिक मूल्यवान है, इससे क्या होगा? आप उस कर्म को श्रृद्धा व रुचि पूर्ण तरीके से करेंगे तो उस कर्म में एक निखार आयेगा।
       श्रद्धा सहित किया गया कोई भी कार्य 
अपना प्रभाव बतलाता ही है, कर्म तो हमें करना ही है, पर जितनी निष्ठा पूर्वक हम अपना कार्य करेंगे, परिणाम बेहतर होते जायेंगे।
    मान लीजिये हम व्यापार करते हैं, तो हमारा व्यापार निष्ठा पूर्वक व ग्राहक की पूर्ण संतुष्टि होना चाहिये, अगर हम राजनेता है, 
तो समाज में किस प्रकार समाज की उत्तरोत्तर उन्नति हो,
समस्याओं का समाधान किस प्रकार कर सके सके, यह मूल भाव हमारे कर्म का होना चाहिये।
और अगर हम अध्यापक हैं, तो छात्र का सर्वांगीण विकास, यानी उसके व्यक्तित्व में 
क्या खूबियां हैं, उन्हें बताना व उसे उस  और प्रेरित करना, स्वयं का एक मुकाम समाज में बनाना व किस प्रकार सामाजिक व्यवस्था 
का वह अंग बने, ताकि जिससे सामाजिकता को और बढ़ावा मिले, यह उद्देश्य एक अध्यापक का होना चाहिये।
कुल मिलाकर जिस भी व्यक्ति का जो मूल कर्म है, पूर्ण ईमानदारी पूर्वक अगर हम समाज में करते हैं, तो बहुत सी समस्याएं अपने आप ही हल हो जायेगी।
        अगर ऐसा कोई भी अपने  जीवन में करता है, तो उसे परिणाम निश्चित ही अच्छे ही प्राप्त होंगे, क्योंकि किसी भी कर्म को आप जितनी निष्ठा से करते हैं, परिणाम उतने बेहतर होते जाते हैं।
     श्री भगवत गीता हमें यही सिखाती है, हम अपने कर्म को निष्ठा पूर्वक करें, जो भी कर्म हमने लिया है, या हमें प्राप्त हुआ है, ईमानदारी, निष्ठा व प्रसन्नता पूर्वक अपने कर्म को करें, निष्काम कर्म योग का यही सिद्धांत गीता हमें बताती है।
    जितनी सरल व्याख्या गीता जी में है, भगवान श्री कृष्ण कहते हैं, अपने कर्म को करिये, न कि दूसरे के कर्म की ओर हम देखें,
आपका जो भी कर्म है, वह पूर्ण ईमानदारी से करिये, यही गीता का मूल मंत्र है। 
विशेष:- अपने नित्य कर्म को पूर्ण ईमानदारी   व निष्ठा पूर्वक करना, इतना सरल संदेश हमें गीता जी प्रदान कर रही है, यह सभी के लिये उपयोगी व कालजयी ग्रंथ है, जिसे अगर हम सही तरीके से समझ जाये, तो फिर संशय की कोई बात ही नहीं उत्पन्न होती, अपने अपने कर्म को पूर्ण निष्ठा व ईमानदारी से करने का संदेश गीता जी हमें प्रदान करती है। 
आपका अपना 
सुनील शर्मा, 
जय भारत, 
जय हिंद, 
वंदे मातरम।

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