सादर नमन,
आप सभी को मंगल प्रणाम,
आज का सामाजिक परिवेश किस प्रकार का निर्मित हुआ है, जहां पर युवा पीढ़ी के अपने सपने है, वे केवल भौतिकता की ओर आकर्षित है, शिष्टाचार व मूल्यों की सौगात,
जिस समाज के द्वारा दी जाती है, वह भी भ्रमित है।
क्योंकि आज से 10 -15 वर्ष पूर्व का समाज हम देखें, तो नैतिक मूल्यों की कीमत थी, व्यक्ति धन किस प्रकार से कमा रहा है,
यह बहुत महत्वपूर्ण था।
विगत वर्षों में जो सामाजिक मूल्यों का पतन हुआ है, उसके लिये सभी वर्ग कुछ न कुछ रुप में समान दोषी है, इस स्थिति में सुधार किस प्रकार लाया जाया, यह गहन चिंतन का विषय है।
व्यक्तित्व विकास की शिक्षा हमें स्वयं उन जीवन मूल्यों पर जीना होती है, जिनकी हम अन्य व्यक्ति या ,परिवार से, समाज से अपेक्षा रखते हैं।
सर्वप्रथम हमें स्वयं अपने ऊपर भी गौर करना होगा, जो सामान्यतः हम नहीं करते,
दूसरे के दोषो को देखना सबसे आसान कार्य है, पर स्वयं के दोषों पर हमारी दृष्टि नहीं जाती।
क्षरण मूल्यों का सभी और हुआ है, मात्र भौतिक उन्नति की और अगर समाज अग्रसर हो जाता है, तो जीवन मूल्यों की कीमत कम हो जाती है।
हमें संतुलित रूप से भौतिक, आध्यात्मिक, पारिवारिक, सामाजिक मूल्यों की पुनर्स्थापना हेतु दृढ़ रहना होगा, पुरानी सभी परंपरा ठीक हो, व नई सारी गलत,
यह कहना भी उचित नहीं, कहां आवश्यक सुधार की आवश्यकता है, यह भी हमें देखना होगा। सब पुराना ठीक, सब नया खराब,
इन दोनों के मध्य का का चुनाव, इन दोनों में जो उचित हो, समयानुकूल हो, उसे हम ग्रहण करे।
वर्तमान की चुनौतियां और कठिन है, जब सब और से अनेक विचार चल रहे हो, तब मानसिक रूप से स्थिर चित्त होकर हमें हल तलाशना होगा, एक लेखक के नाते मैंने यह महसूस किया है कि नई पीढ़ी गैर- जवाबदार नहीं है, वरन वह अपने लक्ष्य के प्रति पहले से भी अधिक सजग है, मगर समाज के प्रति भी उसके कुछ दायित्व है, यह बोध हमें नई पीढ़ी को अवश्य कराना चाहिये।
समाज में कई प्रकार के विभिन्न मत-मतांतर, अनेक विचारधाराएं, अनेकों प्रकार की विविधता, इन सब में सामंजस्य किस प्रकार हम वर्तमान समय में करें, यह बहुत ही चुनौती पूर्ण कार्य है, मगर यह किया जाना चाहिये।
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी भी है, अपने स्वयं के, परिवार के, समाज के उत्तरदायित्वों को किस प्रकार से निभाया जाये, यह निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है।
मानवीय चेतना को अगर हम सकारात्मक दिशा या चिंतन न दे सके, तो आने वाली भावी पीढ़ियां हमें इस बात के लिए उत्तरदायी ठहराएंगी कि हममें इतनी समझ नहीं थी, पर आप लोग तो समझदार व अनुभवी थे।
आपने हमें सही मार्ग चयन हेतु प्रेरित क्यों नहीं किया।
हम अपने सीमित संसाधनों द्वारा भी, उनके कुशल उपयोग द्वारा सामाजिकता को,
दायित्वों को निभा सकते हैं।
संपूर्ण रूप से नई पीढ़ी को जवाब देह मानना अपनी जवाबदारी से चूकना है, उन्हें आवश्यकता व अधिकता का अंतर समझाने का मूल दायित्व हमारी वर्तमान पीढ़ी का है, जिसे हम अनदेखा नहीं कर सकते।
साथ ही युवा साथियों से भी मेरी विनम्र अपील है, बुजुर्गों को कुछ समय अवश्य दें,
उनके अनुभव आपके काम ही आयेंगे, उन्होंने काफी समय लोगों के बीच में जीवन बिताया है, जितनी गहरी समझ उनकी है, उतनी नई पीढ़ी की अभी नहीं, उनकी हर बात को महत्वहीन न माने, बुजुर्गों का अनुभव युवा पीढ़ी का जोश यह दोनों ही समाज के लिए एक सकारात्मकता का निर्माण करेंगे, तालमेल का जिम्मा निश्चित तौर से अनुभवी व्यक्ति का ही है, साथी बुजुर्गों से भी निवेदन
वे भी युवा पीढ़ी के पक्ष को समझें, वर्तमान समय में तालमेल बहुत ही आवश्यक है।
विशेष:- वर्तमान सामाजिक परिवेश अत्यंत ही विचित्र है, एक तरफ समाज में के अच्छे लोग हैं, जो निरंतर प्रयासरत हैं, दूसरी और कुछ लोग हैं, जो मात्र निंदा ही करते हैं, तो जो सामंजस्य बिठाने वाले लोग हैं, वह निश्चित ही श्रेष्ठ है, अत्यधिक महत्वाकांक्षा व अंतहीन दौड़, इनमें से हमें क्या चुनना है? पुरातन व वर्तमान दोनों का आकलन आवश्यक है,
हमारा वर्तमान हमारे कदम के अतिरिक्त
आसपास के घटना चक्रों से भी प्रभावित तो होता है, पर आखिरकार चयन हमें ही करना होता है, हम क्या चाहते है?
आपका अपना,
सुनील शर्मा,
जय भारत,
जय हिंद,
वंदे मातरम।
0 टिप्पणियाँ:
एक टिप्पणी भेजें