भगवतगीता आज कितनी प्रासंगिक

भगवतगीता आज कितनी प्रासंगिक है मुझे इसके अध्यययन से यह प्राप्त हुआ कि भगवतगीता आज तो और भी अधिक उपयोगी है।

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इसका आधार यह है की भगवतगीता बारम्बार यह उद्घोष करती है कि कर्म करिये, फल की इच्छा न रखिये।
अर्थात अपना कर्म ईमानदारी से करे व फिर उस कर्म को उसे अर्पण करदे।

अर्थात सृजन से विसर्जन सिखलाने वाला यह सबसे अनूठा ग्रन्थ है, जो किसी भी व्यक्ति, विशेष, धर्म, सम्प्रदाय का ग्रन्थ-विशेष न होकर आत्म-चेतना को जाग्रत करने वाला अनूठा ग्रन्थ है।

जहाँ सभी धर्म या ग्रन्थ शांति की बात करते है। वही गीता शांति की बात कहते हुए भी उसके पक्ष में खड़े होने के लिए युद्ध का उद्घोष करती है। इसलिए मेरी नज़र में यह अन्य ग्रंथो से हटकर निराला ग्रन्थ है।

इसमें जीवन को कर्म से जोड़ा गया है। स्वकर्म पर विशेष बल दिया गया है, पर धर्म को त्यागने की बात कही गयी है।

अतः किसी भी काल-विशेष में गीता का यह उद्घोष अपने आप में सभी को प्रेरणा प्रदान करता है व विश्व में अपने ही ढंग का अदिव्तीय, बेजोड़ ग्रन्थ है। जिसका सहारा लेने पर यह अवश्य ही आपका मार्गदर्शन करता हुआ आपको आपके ध्येय तक पहुँचाता है।

जैसे एक छात्र का धर्म पढ़ना, अध्यापक का धर्म पढाना, गृहस्थ का धर्म परिवार का निर्वाह करना, राष्ट्राध्यक्ष का धर्म राष्ट्र को चलाना यानि जो व्यक्ति जहाँ है, वहाँ पर अपना स्वकर्म पूर्ण ईमानदारी से करे, इसी बात की व्याख्या करती है।

आज समाज में जितने भी अंतर्द्वंद है, गीता का सही अनुसरण करने पर ही उन सभी का हल सम्भव है। 

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