अंतर्यात्रा ( भाग 7 )

प्रिय पाठक वृंद,  
सादर नमन, 
आपका दिन शुभ व मंगलमय हो। 

ईश्वर की कृपा आप सभी पर सदैव बनी रहे,  इसी मंगलमय कामना के साथ अंतर्यात्रा भाग साथ में आज चर्चा करेंगे,  यह चर्चा कुछ अलग प्रकार की होगी।

हमारा सबसे पहला कर्तव्य स्वयं के प्रति,  फिर परिवार के प्रति,  क्रमशः सीढी दर सीढी चलना चाहिए यदि हम स्वयं के प्रति ही  जागरुक नहीं है,  तो क्या किसी और को जागरुक कर सकेंगे,  इसीलिए सर्वप्रथम सभी परिस्तिथियों के प्रति स्वयं चेतनशील होना ही आपकी उन्नति की प्रथम शर्त है।

अगर हम चिंतनशील व मननशील होंगे तभी तो हम सभी से सजग रह कर व्यवहार कर सकेंगे,  यहां समझना अत्यंत महत्वपूर्ण है की सभी व्यक्तियों का व्यक्तित्व अलग प्रकार का होता है उसे पहचान कर ही हम तदनुरूप आचरण कर सकेंगे,  व्यावहारिक जगत में यही ठीक है,  कोई व्यक्ति तामसिक प्रवृत्ति का है,  उसके आचरण से यह समझ में आ जाएगा। उसे तत्व रूप में उसके तामस स्वभाव को जानकर उसी अनुरूप ही व्यवहार करना उचित होगा अन्यथा आप इस बात को समझ न आने के कारण  परेशानी में आ जाएगे। तमोगुणी रजोगुणी व सत्वगुणी का अंतर व्यावहारिक कार्य जगत में समझना होगा,  तभी हम बखूबी इस बात को समझ कर अपनी बुद्धि का प्रयोग करते हुए सही दिशा में निर्णय ले सकेंगे।

दैनंदिन जीवन में हम कई लोगों से बात करते हैं,  दरअसल उनकी बातचीत से ही उनके रूप को जानकर वैसा आचरण कर पाएंगे,  सभी से एक जैसा व्यवहार कर पाना संभव नहीं व व्यवहारिक भी नहीं। हमें अपना आंतरिक भाव शुद्ध रखते हुए आचरण करना चाहिए,  पर सामने वाले व्यक्ति की मनोवृत्ति को भी समझना आवश्यक है जैसे संस्कृत में सूत्र है शठे शाठ्यम जैसे को तैसा,  हमें इसे अपने व्यवहारिक अनुभव में समझना चाहिए।

विशेष = अपने अंतर में उस भाव को स्पष्ट समझने का प्रयास करें,  व्यावहारिक जगत में अपना मानस शुद्ध रखें पर सामने वाले के व्यवहार को भी नजरअंदाज न करते हुए आचरण करें,  अन्यथा आप संकट में आ सकते हैं।

                                                                                                                                                             आपका अपना,   
                                                                                                                                                              सुनील शर्मा।

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