प्रिय पाठक गण,
सादर वंदन,
आज के इस वैचारिक प्रवाह में हम बात करेंगे, परमात्मा दिव्य है।
परमपिता परमात्मा दिव्य है, वह उसने हम सभी को समान रूप से सजग दृष्टि प्रदान की है।
परंतु या तो अहंकार या हमारे निजी स्वार्थ के कारण ही हम उसकी परम अनुकंपा से वंचित हो जाते हैं।
अगर हम जीवन में उसकी परम कृपा स्त्रोत अपना ले, तो हमारा यह जीवन एक अमूल्य धरोहर बन हमारा स्वयं का जीवन तो बदल ही देगा।
हमारे संपर्क में आने वाले समस्त प्राणियों पर भी हमारे जीवन एवं विचारों का प्रभाव अवश्य पड़ता है।
इसीलिए हर वक्त उसके अनुकंपा को जीवन में धारण करके रहे, हमारा कल्याण सुनिश्चित हो उठेगा।
जगत में क्या ऐसा है, जिसमें ऊर्जा का संचार नहीं है, ऊर्जा की बात करें तो निश्चित ही दो प्रकार की ऊर्जा इस संपूर्ण ब्रह्मांड में बह रही है, एक सकारात्मक व दूसरी नकारात्मक,अब आप पर निर्भर हैं कि आप कौन सी वाइब्रेशन अपने स्वयं के भीतर भी उत्पादित कर रहे हैं। जैसी वाइब्रेशन हमारे भीतर से होगी वैसे ही परिणाम हमें सृष्टि से देर सवेर अवश्य प्राप्त होंगे।
यही हमारा सनातन धर्म या विज्ञान कहता है।
, कुछ समय के लिए हम कैसे व्यक्ति को अपने किसी भी कार्य में शामिल करना चाहेंगे, हम निश्चित ही सहयोगात्मक प्रकृति वाले व्यक्तियो को हमारे साथ जोड़ना चाहेंगे।
अतः क्या यही नियम सभी पर समान रूप से लागू नहीं होगा, फिर हम ईश्वर को वह भाग्य को दोष क्यों प्रदान करते हैं, जैसा हम सोचते हैं जीवन में अक्सर वही घटता है।
अतः हम हमारे ह्रदय में निरंतर अच्छे विचारों को ही स्थान दें,तो एक समय ऐसा आएगा जो परिवर्तन होगा वह सकारात्मक ही होगा।
विशेष:-उसकी अनुकंपा को अपने जीवन में प्रथम स्थान प्रदान करें, फिर देखें कैसे आपके सभी कार्य स्वत: ही होने लगेंगे, पूर्ण आस्था उस पर बनाए रखें।
इति शुभम भवतु
आपका अपना
सुनील शर्मा
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