सादर नमन,
आज प्रवाह में हम बात करेंगे, समय व सबंध पर, दोनों ही हमारे जीवन में दो ऐसे स्तंभ है, जिन पर समस्त जीवन की इमारत खड़ी होती है, और इन दोनों का संतुलन साथ लेना ही जीवन की
सफलता का मूल मंत्र है।
हमें जीवन में समय का सही सदुपयोग करना आता है, तो हमारे सभी कार्य सुसंगठित हो जाते हैं, समय को यूं ही व्यर्थ करने वाला व्यक्ति ना तो संबंध निभा है, और नहीं स्वयं के जीवन को
व्यवस्थित कर पाता है, जैसे-जैसे जीवन गति पकड़ता है, हमारी जिम्मेदारियां बढ़ती जाती है, ऐसे में समय का एक-एक क्षण बहुमूल्य हो जाता है, और तब हमारे संबंधों की परीक्षा भी
आरंभ होती है, की क्या हम समय रहते अपने संबंधों को उचित
स्थान दे पा रहे या नहीं। हमें यह समझना होगा, की संबंध निभाने के लिए मात्र भौतिक उपस्थिति ही पर्याप्त नहीं होती, समय की गुणवत्ता, उसमें डूब कर दिया गया भाव , स्नेह व सहभागिता भी उसमें आवश्यक है। एक और यदि हम समय के पाबंद है, पर संबंधों में रुक्षता है, तो वह भी व्यर्थ है। और यदि संबंधों में हम
भावनात्मक रूप से जुड़े हैं, पर समय का नियोजन नहीं कर पाते,
तब भी जीवन में अव्यवस्था जन्म लेती है, अपने दैनिक जीवन में
हमें यह चिंतन करना चाहिये, क्या हम अपने निकटतम संबंधों को यथोचित समय दे पा रहे हैं? क्या हमारी दिनचर्या में कुछ क्षण ऐसे हैं, जो केवल आत्मीय संवाद, आत्मीय सानिध्य के लिये आरक्षित है? यदि नहीं तो वह संबंध धीरे-धीरे शुष्क होते जायेंगे, समय के इस तीव्र प्रवाह में संबंधों को जीवित रखने के लिये उनकी नियमित देखभाल आवश्यक है, संबंधों में संवाद, संवेदना और
सहभागिता आवश्यक है। जो व्यक्ति समय का विवेक पूर्वक उपयोग करते हैं, और अपने प्रियजनों को उसका हिस्सा बनाते हैं,
वे न केवल व्यवस्थित जीवन जीते हैं, बल्कि आत्मिक रूप से भी संपन्न होते हैं।
विशेष:- समय के साथ-साथ संबंधों की मर्यादा रखें, क्योंकि जीवन में अगर समय चला जाये तो अवसर खो जाते हैं, और यदि संबंध टूट जाए तो भावनाओं का मूल्य समाप्त हो जाता है, दोनों की ही
अपनी महत्ता है, कहां क्या आवश्यक है, विचार पूर्वक देखें।
आपका अपना
सुनील शर्मा
जय भारत
जय हिंद।
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