आध्यात्मिकता व व्यवहारिकता

प्रिय पाठक गण,
         सादर नमन, 
 आप सभी को मंगल प्रणाम, 
        प्रवाह की यात्रा में आपका स्वागत है, आई आज बात करेंगे आध्यात्मिकता व व्यवहारिकता पर।
       आध्यात्मिकता व व्यवहारिकता दरअसल एक ही सिक्के के
दो  विपरीत पहलू है, जब हम गहनता में जायेंगे तो पायेंगे कि आध्यात्मिकता हमारी 'स्वयं से स्वयं की' यात्रा है, और व्यवहारिकता हमें सांसारिक यात्रा करना सिखाती है।
       आत्मिक शांति प्राप्त करने हेतु हमें अपने भीतर ही जाना होगा, जो नितांत निजी आध्यात्मिक अनुभव है, वह हम अपने भीतर ही जाकर पा सकते हैं, उसके लिए आपको अनिवार्यतः आपको भीतर की और आना होगा।
        व्यवहारिक कला हमें सांसारिकता का ज्ञान करती है, दरअसल दोनों ही बातों का जीवन में महत्व है, कहां पर हमें आध्यात्मिकता का आश्रय ग्रहण करना है व कहां पर सांसारिकता का? इस संसार में दोनों ही बातों का ज्ञान होना आवश्यक है, व्यवहार कुशलता का ज्ञान भी जरूरी है।
         इन दोनों का ही उचित सम्मिश्रण हमें जीवन में करना होता है। आध्यात्मिकता व व्यवहारिकता मानो रेल की दो पटरियों की
भांति है, जो अलग-अलग हैं, मगर समानांतर ही चलती है, दोनों का ही जीवन में  समान महत्व है, दोनों का ही उचित समानांतर उपयोग भी जीवन में है।
        हम पूर्णतः आध्यात्मिक नहीं हो सकते, नहीं पूर्णतः व्यवहारिक, दोनों ही बातों का अपना महत्व है, हमें ध्यान पूर्वक देखना होगा कहां पर आध्यात्मिकता लागू होगी व कहां पर व्यावहारिकता का नियम लागू होगा।
    यह हमें नित्य अवलोकन करते रहने पर ही प्राप्त होगा, हमें अपनी जीवन यात्रा में अनिवार्य रूप से दोनों का ही समन्वय करना होता है।
     आध्यात्मिकता व व्यवहारिकता  का उचित समन्वय करने पर ही हम जीवन को सही प्रकार से जी सकते हैं। 
    जीवन रूपी गाड़ी को चलाने के लिए यह दो समानांतर धारा है, आपको दोनों पर ही समान रूप से कार्य करना होगा, जैसे-जैसे हमारा जीवन आगे बढ़ता है, हमारे पास अनुभव भी गहरे होते जाते हैं। 
    जितना अधिक आपका गहरा अनुभव होगा, उतनी ही आपकी यात्रा उस अनुभव के कारण सुगम होती जायेगी।
विशेष:-आध्यात्मिकता व व्यवहारिकता दोनों में ही अंतर है, एक नितांत निजी है, वह है आध्यात्मिक अनुभव, एक सामाजिक व्यवहार कुशलता से जुड़ी है, वह है व्यवहारिकता, एक ही सिक्के के दो विपरीत पहलू की भांति यह अनिवार्य रूप से सभी के जीवन में होती है, इन दोनों बातों को जितनी कुशलापूर्वक हम आपस में जोड़ेंगे, उतने ही श्रेष्ठ परिणाम हमें प्राप्त होंगे।
आपका अपना 
सुनील शर्मा 
जय भारत,
जय हिंद।

0 टिप्पणियाँ: