सादर नमन,
आप सभी को मंगल प्रणाम,
उस परम सत्ता को विनयपूर्वक प्रणाम, जिसने मेरी वाणी में
साहस उत्पन्न किया, मधुर वाणी व निज कर्तव्य पर टिके रहना
इतना आसान भी नहीं होता है, यह केवल प्रभु की अनन्य शरणागति मात्र से ही संभव है, अन्य कोई भी दूसरा उपाय है ही
नहीं, गीता अद्भुत ग्रंथ है, इसके हर पृष्ठ पर श्रीकृष्ण जी की
दुर्लभ वाणी का संग्रह है, जो हर काल में आपका मार्गदर्शन करती है।
जो भी नित्य नियम पूर्वक प्रभु का स्मरण करते हैं, वह उस परमपिता की शरण में अपना सारा कर्म करते है, फिर किसी भी प्रकार के विचलन के लिये कोई जगह ही नहीं है।
विचलन केवल वहां होगा, जब हम राग में होंगे या फिर द्वेष में होंगे।
इन दोनों ही स्थितियों से हटकर जब हम स्थितप्रज्ञ हो जाते हैं,
यानी आंतरिक प्रज्ञा में स्थिर हो जाते हैं, तो बाहर कितनी भी तेज आंधियां ही क्यों नहीं चल रही हो, आंधियों से मेरा तात्पर्य बाहरी
परिस्थितियों चाहे वहअनुकूल हो या प्रतिकूल, हमें अपने मार्ग से
विचलित नहीं होने देती।
जो मनुष्य अपने सहज कम को पूर्ण श्रद्धापूर्वक बगैर अहंकार के निर्वहन करता जाता है, वही उसकी कृपा का पात्र बन जाता है। प्रभु स्वयं ही उसका मार्गदर्शन हर पल करते हैं। उनकी दिव्यता,
दिव्या ग्रंथो में दी गई वाणी सदैव ही उनका मार्गदर्शन करती रहती है।
अपने मूल कर्तव्य पर पूर्ण श्रद्धा पूर्वक हम दृढ़ रहे, बस इतना ही करें, शेष भार फिर वह सब देख ही रहा है।
कितनी भी बड़ी बाधा हो हमारे जीवन में, वह हटेगी ही, समय अनुसार जो भी घटनाक्रम घटना है, वह अवश्य ही घटेगा।
कर्मफल में ध्यान ना रख कर सहज भाव से आपने जो भी कर्तव्य -कर्म स्वीकार किया है, वह बगैर त्रुटि के करने की हरसंभव कोशिश करें, वह परमात्मा सदैव आपके साथ ही है।
बस राग व द्वेष दोनों से ही दूर रहे, अन्यथा यह आपके मूल कर्तव्य को बाधित कर सकते हैं। ऐसा होने पर कुछ समय उस
परमात्मा की शरण गृहण करें, फिर बहुत आराम से निर्णय करें,
आखिर हमको क्या करना है?
जीवन जब तक है, तब तक विभिन्न संघर्ष तो जीवन में आएंगे ही, युक्तिपर्वक व वह बुद्धिमानी से हम समाधान निकाल सकते हैं, संघर्षों से घबराकर हम अपनी सही राह कभी न छोड़े,
आखिरकार वही आपका रक्षण अवश्य करेगी।
भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं भागवत गीता में घोषणा की है, सबकी शरण त्याग कर जो मेरी अन्य शरणागति भक्त ग्रहण करेंगे,
उन्हें अपने आश्रय में सदा ही रखूंगा।
वह उद्घोषणा कर रहे हैं, यतो धर्म तथो जय।
अर्जुन को भी वे युद्ध लड़ने के लिए प्रेरित करते हैं, वह जीवन संग्राम में हटने के लिए नहीं, वरन अपनी भूमिका को आप सही ढंग से कैसे निभायें, समाज में, परिवार में ,इसका एक उदाहरण देते हैं।
हमारे सामने जीवन में जब संशय की स्थिति उत्पन्न हो, मेरी राय मैं भागवत गीता का आश्रय व अनुशरण, हमें सभी प्रकार के श से रहित करता है, वह आत्म बल को बढ़ाने वाला है।
विशेष:- हर परिस्थिति में हम अपनी भूमिका का निर्वहन किस प्रकार कर रहे हैं, वह संतुलित है या नहीं, उस पर ही सारी चीजें
निर्भर होती है। अपना दायित्व पूर्ण ईमानदारी पूर्वक निभाफिर उसे ईश्वरी सत्ता पर छोड़ दे,
"कर्मण्येवाधिकारस्तु, मा फलेषु कदाचन"
आपकाअपना
सुनील शर्मा
जय भारत
जय हिंद।
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