सादर प्रणाम,
आप सभी को सादर प्रणाम, प्रवाह की इस मंगलमय वैचारिक यात्रा में आप सभी का पुनः स्वागत, अभिनंदन।
माननीय सभ्यता का वर्तमान स्वरूप जो हम देख रहे हैं, वह
काफी कुछ मात्र भौतिकता पर आधारित हो गया है, हम सभी को मिलकर इस बात पर गहरा विचार करना चाहिये की धर्म की मूल स्थापना क्यों की गई है?
दरअसल यह एक जीवन जीने की पद्धति है, जिसमें हम प्रकृति के सभी तत्वों के साथ समावेश करते हुए प्राकृतिक संसाधनों का दोहन व संरक्षण दोनों ही करते हैं।
आज का युग विज्ञान का युग है, पर क्या उसके लिए हम प्रकृति को पूर्ण रूप से नजर अंदाज कर दे, प्रकृति व विज्ञान का समन्वित तालमेल व उसे मानवीय मूल्यों की परिधि में रखकर उसको किया जाना, आज की सबसे महत्वपूर्ण आवश्यकता है।
हमें ऐसी जीवन शैली को अपनाना होगा, जहां पर विज्ञान, भौतिक वस्तुओं , प्रकृति व मानवीय संबंध , इन सभी को समान महत्व दिया जाये।
जितने भी मानवीय सभ्यताएं हैं, वह मानवी विकास की गाथा को आगे बढ़ाने में किस प्रकार सहायक हो, प्राकृतिक वातावरण से हम मुख न मोड़ें, क्योंकि जीवन के अनुभव व प्राचीन ऋषियों ने जो हमको दिया है।
विज्ञान व प्रकृति का सुंदर समन्वय स्थापित करके अपने आप कैसे सहज रूप से हम जीवन को चलायें, इस और ध्यान देना आवश्यक है।
भौतिक साधन व प्रकृति दोनों ही हमारी उन्नति के लिए आवश्यक है, हमारी प्राचीन भारतीय संस्कृति एवं परंपरा हमें मूल्यों का बोध सिखाती है, वह विज्ञान हमें उपभोग की और प्रेरित करता है।
यह दोनों ही अनिवार्य है, हमें दोनों ही पहलुओं का समन्वय करना ही होगा।
सकारात्मक नजरिया रखते हुए हम अपना जीवन चलाएं,
मूल्य पर आधारित जीवन हम अपना स्वयं का तो चलाएं ही, साथ ही औरों का जीवन भी सहज रूप में चलायें।
माननीय मूल्य की स्थापना के बिना कोई भी मानवीय सभ्यता एक ऐसा शोर- शराबा बनकर रह जायेगी, जो नीरज सुबह अर्थहीन होकर रह जायेगी।
हमारा जीवन एक उत्सव की भांति होना चाहिये, हम किसी के लिए समस्या न बनकर समाधान बने, तभी मानवीय सभ्यता वह मूल्य पर आधारित समाज की पुनर्संरचना की जा सकेंगी, वही इस समाज के लिए जरूरी भी है।
चिंतन करिए, क्योंकि हम सभी इसी समाज का एक घटक है।
हमारे कार्य की दिशा , हमारा बर्ताव कहीं असामाजिक तो नहीं,
सामाजिक तथ्यों को सही प्रकार से हम देखें वह जो भी समाज को दिशा प्रदान कर रहे हैं, ऐसे व्यक्ति वह प्रयासों का समर्थन भी करें।
विशेष:-किसी भी कल में समय के साथ कुछ दोष भी उत्पन्न हो जाते हैं, उनका निराकरण भी आवश्यक है, साथ ही नई बातों का समावेश, जिसे सामाजिक चेतना को बल प्राप्त होता है, उनका समर्थन अवश्य करें।
आपका अपना
सुनीलशर्मा
जय भारत
जय हिंद
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