सादर नमन,
आज श्रावण माह का सोमवार है, महादेव, भोलेनाथ, जिनके मन मे सबके प्रति समभाव व दयाभाव है, वे मर्यादा के भी रक्षक है,
प्राणीमात्र पर सहज ही कृपा को करने वाले, सज्जनों की रक्षा करने वाले वह दुष्ट प्रवृत्तियों वाले व्यक्ति या मनुष्य के लिए वे महाकाल है, उनके इस परम दिव्य स्वरुप को नमन।
श्री हनुमान जी उन्हीं के 11वें रुद्र अवतार है, हनुमान चालीसा में वर्णन आता है, साधु संत के तुम रखवारे, असुर निकंदन रामदुलारे।
ऐसे मेरे महादेव, श्री हनुमान जी जिनकी 11वीं रुद्र अवतार भी हैं, भोलेनाथ , जैसा उनके नाम में ही वर्णित है, वे सरल हृदय है, मगर जिनके मन में आंतरिक शुद्धता नहीं होती, वे शिवजी की आराधना भी नहीं कर सकते, जो हृदय से निष्कपट है, वे ही शिवजी के सच्चे भक्त भी है।
जगत कल्याण के लिये वे स्वयं विषपान करते हैं, मगर जगत का कल्याण करते हैं। समुद्र -मंथन के समय जब हलाहल विष
निकला, तब संसार में त्राहि-त्राहि मच गई, उन्होंने इसका पान किया विष को कंठ में धारण किया, जिससे वे नीलकंठ कहाये।
रामचरितमानस में एक जगह वर्णन आता है, जब माता सती
जब राम जी माता सीता जी को जगह-जगह ढूंढ रहे हैं, तब माता सती को शंका हो जाती है, यह कैसे भगवान है, महादेव समझ जाते है, वे उन्हें समझाते हैं, मगर भावी प्रबल जान उन्हें राम जी के दर्शन हेतु भेज देते हैं, जब माता सीता उन्हें देखती हैं, उन्हें सब दूर राम ही राम नजर आते हैं, वे घबरा उठती है, रामजी उनसे कहते हैं शिव जी कहां है, वे प्रति उत्तर नहीं दे पाती, तुरंत वहां से वापस शिवजी के पास प्रस्थान करती हैं, शिवजी योग बल से
जान लेते हैं, वे तत्क्षण माता सती का मानसिक रूप से त्याग कर देते हैं, क्योंकि जो भी राम का द्रोही है, वह उन्हें स्वीकार नहीं, यह चराचर जगत, प्राणीमात्र में राम ही रमण करते हैं, हमें भी व्यक्ति के दोषों से मुक्ति हेतु परमात्मा से प्रार्थना करना चाहिये, क्योंकि हम सभी उसी परमात्मा के ही अंश है, हमारी आकृतियां भिन्न हो सकती है, मगर सब में जो प्राण शक्ति के रूप में अंश है वह उसी ईश्वर का ही है, जब वह हट जाती है तब हमारी मृत्यु हो जाती हैं।
शिवजी का एक नाम मृत्युंजय भी है, जो उनके नाम का जाप करते हैं, वह मृत्यु को भी जीत लेते हैं।
मेरे महादेव भोले तो हैं, मगर मर्यादा के रक्षक भी है, वे परम उदार चित्त है, उनके हाथ में जो त्रिशूल है, वह तीनों प्रकार के ताप आध्यात्मिक, आधि भौतिक आधि दैविक को नष्ट करने वाले है, तीनों प्रकार के ताप मात्रा मेरे महादेव शिव जी की शरण से ही
दूर हो जाते है।
वे अनन्य कृपा को करने वाले, सामाजिक समता का निर्वहन करने वाले, समाज में सद्भाव की गंगा बहाने वाले हैं, उनके केशों में मां गंगा जी का निवास है।
गले में सांपों की माला है, उनके शिव -दरबार में परस्पर विरोधी भी शोभायमान होते हैं, जहां उनके गले में सर्प है, गणेशजी का वाहन मूषक है, कार्तिकेय जी का वाहन मोर हैं, इनमें आपस में शत्रुता है, मगर शिवजी के समक्ष वे सभी एक हैं।
ऐसे मेरे परम पवित्र श्री महादेव जी के पावन चरणों में परम श्रद्धापूर्वक नमन, जो अपने भक्तों के समस्त दोषों का उसी प्रकार पान कर लेते हैं, जैसे उन्होंने हलाहल विष का पान कया था।
वे केवल भक्त का हृदय देखते हैं, उसके दोष नहीं।
पुनः महादेव शिव शंभू , महाकाल के चरणों में नमन।
वे एक और तो दया करने वाले हैं, दूसरी और दुष्ट प्रवृत्तियों
का नाश करने वाले हैं।
महादेव के इन दोनों रूपों को सादर नमन, वे मर्यादा के भी रक्षक हैं, अगर समाज मर्यादाहीन हो जाये तो वे दंडित भी करते हैं।
बाबा महाकाल ,मर्यादा के रक्षक है, जो भी सामाजिकमर्यादाओं का उल्लंघन करता है, उसका वे संहार भी अवश्य करते हैं।
विशेष:- श्रावण मास मेरे बाबा महाकाल का माह है, मैं भूल-चूक को माफ करने वाले हैं, मगर जानबूझकर की गई भूल वे माफ नहीं करते, समय आने पर उसका दंड अवश्य प्रदान करते हैं, मैं मर्यादित आचरण के रक्षक देव है, इसीलिये महादेव है।
जो सामाजिक में स्वयं विषपान करते हैं, वह समाज का रक्षण करते हैं, ऐसे तमाम व्यक्तित्व भी अपने आप में महादेव ही है, उन सभी व्यक्तित्वों को भी प्रणाम, जो अपने कर्मों से समाज को दिशा देते हैं, वे महादेव है।
उन सभी को भी सादर नमन।
आपका अपना
सुनील शर्मा
जय भारत,
जय हिंद
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