सादर नमन,
आप सभी को मंगल प्रणाम,
मेरी यह प्रवाह यात्रा आप सभी को कैसी लग रही है, आप अवश्य बतायें, हम सभी उसी परमपिता काअंश है, उसने हम सभी को समान अवसर दिये, प्रकृति से समान उपहार दिये, मगर हम राग या द्वेष के वशीभूत होकर अपनी उस परम चेतना को भूल बैठे हैं,
जो हमारे साथ ही अन्य में भी विद्यमान है।
जब उसे परम चेतना का अंश हम सभी में विराजमान हैं, तो फिर हम किस प्रकार औरो से अलग हुए, एक और तो हम कहते हैं ईश्वर कण-कण में विराजमान है, दूसरी और उसी कण-कण में विराजित ईश्वर की हम अवहेलना करते हैं, जब हम सभी में समान रूप से विद्यमान है, तो हमें अहंकार किस बात का है, पद का, जाति का ,कुलका, राष्ट्र का, दरअसल हम सभी उस परम चेतना को भूल बैठे हैं, क्योंकि हमने चिंतन करना बंद कर दिया, अगर हमारा चिंतन सही दिशा की ओर होता तो किसी से भी वेमनस्य की हमें आवश्यकता ही क्या है? या तो हम अपने स्वरूप को भूल बैठे हैं, यह हमारी चेतना पर धूल जम गई है, हम कई बार हमारे अहंकार का पोषण कर बैठते हैं, विनम्र भाव से अगर हम देखें तो यह संपूर्ण सृष्टि उसी का अंश है, हम केवल हमारे मोह के कारण उसमें विभेद कर बैठते हैं, वस्तुत वह परम चेतना तो सभी में है,
हां मगर वह सुप्तावस्था में है, जो भी व्यक्ति अपने अहंकार से पीड़ित है, वह उसपरम चेतना तक पहुंचेगा कैसे? या तो सद्गुरु का आश्रय ले, या फिर किसी सद ग्रंथ का आश्रय, अन्य तो कौन मार्ग है ही नहीं, हम सभी के साथ जन्म-जन्मांतर के कर्म चक्र चले आ रहे हैं, केवल वह ईश्वर ही जानता है , कि वह क्या लीला करने वाला है, हम सभी तो केवल निमित्त मात्र है, ना कोई बड़ा है, ना कोई छोटा है, उसे परमपिता परमेश्वर की जब जैसी प्रेरणा होती है,
वह घटने लगता है, उसकी दिव्यता को हम इतनी आसानी से जान नहीं सकते, क्योंकि हमारे यह आंखें संसार का दृश्य देखती हैं, मगर वह परम चेतना संपूर्ण संसार को देखती हैं, उसकी दृष्टि से
कोई नहीं छुप सकता, हम भले लाख ही अपने आपको धोखा दे
दे, सत्य से हम परिचित होते हैं, मगर अपने अहंकार के कारण उसे स्वीकार नहीं करते, और यहीं से ईश्वर की लीला का प्रारंभ
होता है, वह जी से भीतर से चेतन कर देते हैं, फिर उनकी कृपा का
स्पर्श सदैव ही रहता है।
आज का समय तीव्र गति का समय है, सूचनाओं इतनी नहीं अधिक तेजी से आती है, हम उन सूचनाओं मे क्या ग्रहण करें? और क्या नहीं?
इसको बगैर समझे और जाने ही हम अपने जीवन को जीने के लिए विवश से प्रतीत होते हैं, जब तक हम स्वयं यह तय नहीं करते, हमारे जीवन को जीने के मापदंड क्या है? क्या मात्र भौतिक साधनों की प्राप्ति से हम माननीय जीवन की गरिमा को प्राप्त कर सकते हैं।
हमें नित्य निरंतर एक आंतरिक पुनर्निर्माण की प्रक्रिया से गुजरना होत है, हमारे अनुभव हमें जीवन -दिशा देते है, जब तक हमारा जीवन है, तब तक विभिन्न प्रकार के संघर्ष वह चाहे वैचारिक हो, पारिवारिक हो, भौतिक हो, व्यावसायिक हो, हमें इन सभी बातों से अनिवार्यतः गुजरना ही होता है।
यह एक प्रक्रिया है, जो हमें अपने जीवन में मिलती है, हम उसमें अपनी भूमिका का निर्वहन कितनी कुशलतापूर्वक करते हैं।
बगैर किसी पूर्वाग्रह के, आंतरिक दृढ़ता से हम इन सब बातों का
सामना कर सकते हैं, कई बार हमारे सामने बहुत से विकल्प होते
है, उन विकल्पों में से हमें चुनना होता है, हम कौन सा विकल्प चुने, जब भी हम कोई निर्णय करें, उसे निर्णय में हम विगत चूको,
वर्तमान परिस्थितियों वह क्या सबसे अधिक इस समय आवश्यक है, उसका विचार करें, पूर्ण विचार व मंथन के बाद अगर हम निर्णय लेते हैं,तो निश्चित ही अपनी दिशा को हम स्वयं तय कर सकते हैं।
अपने अनुभव, बुजुर्गों के अनुभव, परिस्थितियों वह उन परिस्थितियों में अपनी सकारात्मक विचारधारा हम क्या अच्छा कर सकते हैं, मार्ग की जो बाधाए है, वह बाधाएं ही हमारे जीवन में पुनर्निर्माण में सहायक होती है।
निष्पक्ष रहे, निड़र रहे, भय मुक्त होकर, उसे परमपिता परमात्मा की शरण होकर, उनके नित्य सानिध्य को स्मरण रखें, नित्य उनके सानिध्य में रहने पर वह परमपिता परमात्मा ही हमें प्रेरणा प्रदान करेंगे, अपने आप ही आप वही निर्णय लेंगे, जो इन स्थितियों में आपको करना है, हम सभी के भीतर एक गहरी सामर्थ्य छिपी है।
बस, उन अनंत विराट संभावनाओं को हमें पूर्ण रूप से,
हृदय से स्वीकार करना है, जैसे ही आप स्वीकार्य भाव से अपनी जवाब देही को समझ कर कार्य करते रहेंगे, फिर सब मंगल ही होगा।
आंतरिक मंथन जब भी हम कोई महत्वपूर्ण निर्णय करें,
तब अवश्य ही करें, परम पिता पर पूर्ण विश्वास रखें, हमें प्रेरणा व शक्ति दोनों ही प्रदान करने वाले वे ही हैं।
उन्हें शत-शत प्रणाम,
विशेष:- अपनी प्राथमिकता, अपना मूल्य समझे, समय कहां कितना आवश्यक है, वह विचार करें, कुछ समय व्यक्तिगत समस्याओं के लिये , कुछ परिवार के लिये, कुछ आध्यात्मिक जगरूकता वह कुछ समय दैनिक व्यवस्ताओं के बाद भी किसी सकारात्मक समूह से जितना हमसे हो सके, जुड़े, समय-समय पर अपनी आंतरिक चेतना को भी जागृत करते रहें।
आपका अपना
सुनील शर्मा
जय भारत
जय हिंद।
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