श्रीमद् भागवत गीता

प्रिय पाठक गण,
      सादर नमन, 
आप सभी को मंगल प्रणाम, 
 परमपिता परमेश्वर को सादर वंदन, आप सभी में स्थित परमात्मा के पावन अंश को भी सादर नमन, 
   आज प्रवाह की इस मंगलमय यात्रा मे हम बात करेंगे श्रीमद्भागवत गीता पर, मैं जो विभिन्न प्रकार के विषय व लेख लिख पा रहा हूं, यह मां सरस्वती का आशीष है। 
      यह ग्रंथ कालजयी ग्रंथ है, कालजयी  मेरा तात्पर्य यह है, इसमें भगवान श्रीकृष्ण  द्वारा जिस प्रकार से संशयो का निवारण किया गया है , वह किसी भी काल में उतना ही सत्य है, जितना तब कहा गया था। 
       इसमें प्रथम अध्याय से लेकर 18 अध्याय तक अलग-अलग विषयों पर जितने सुंदर तरीके से हर बात को समझाया गया है,  वह अद्भुत  व  अमूल्य है। यह हर काल में सभी को प्रेरणा प्रदान करने वाला है। 
        इसमें गृहस्थ धर्म, कर्म योग, संन्यास धर्म, सांख्य योग, भक्ति योग, आत्म तत्व और कौन सा कर्म करना उचित है? अथवा उचित नहीं, इसका बड़ा ही सुंदर विवेचन इसमें दिया गया है। 
       जो भी व्यक्ति श्रद्धा पूर्वक गीता जी का अध्ययन ,मनन व चिंतन करता है, वह स्वयं तो जागृत होता ही है, अन्य को भी जागृत करता है। इसका जो कोई भी व्यक्ति श्रद्धा पूर्व किसका अध्ययन करेगा , तो वह उसके जीवन में अत्यंत उपयोगी साबित
होगा। 
हमारे जीवन में कई अवसर ऐसे आते है, जब हमें कोई ना कोई निर्णय अवश्य करना ही होता है, परिस्थितियों का निर्माण ही इस प्रकार   हो जाता है, कि हमें कोई न कोई निर्णय तो अवश्य ही ।
करना पड़ता है।
    मेरी नजर में गीता जी एक अद्भुत ग्रंथ है, जो सर्वसाधारण के लिए वह सभी के पढने योग्य है।  
    भगवान श्रीकृष्ण जी ने बिल्कुल व्यावहारिक उपाय बताएं है।
चार रूप में अगर हम गीता जी का अध्ययन करते हैं तो यह एक अत्यंत ही जीवन में उपयोगी ग्रंथ है, इसे एक बार सभी को पढ़ना आवश्यक चाहिये।
विशेष:-श्रीमद् भागवत गीता किसी धर्म-विशेष का ग्रंथ न होकर
व्यवहारिक शिक्षा का ग्रंथ है, जो हमें जीवन जीने के अनमोल सूत्रों से अवगत कराता है।

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