नेतृत्व में साहस

प्रिय पाठक गण,
     सादर नमन, 
आप सभी को मंगल प्रणाम, 
 प्रवाह की इस मंगलमय यात्रा में आप सभी का स्वागत है, किसी भी नेतृत्वकर्ता  जो सर्वप्रथम गुण है वह है साहस, पूर्ण साहस।
       समाज में जिस किसी को भी नेतृत्व करना है, उसमें सबसे पहले गुण सत्य मार्ग का अनुसरण करना होना चाहिये, पूर्ण साहस से सत्य को कहना, किसी भी प्रकार से दबाव में न आना, यह सर्वप्रथम गुण एक नेतृत्वकर्ता का होना चाहिये, मान व सम्मान भी परे जो कह सके,  वह दृढ़ता एक नेता में होना चाहिये, समाज में हर कोई अपने नेता का अनुसरण भी करता है, इसलिए कुछ मौलिक गुण एक नेतृत्वकर्ता में अवश्य होने चाहिये।
        सब का सम्मान, परंतु अगर कुछ कहीं गलत घट रहा है, तो उसका सादर सधे शब्दों में विरोध , वह भी एक आवश्यक गुण होना चाहिये।
          पारदर्शिता, सबको साथ में लेकर चलना, विपरीत परिस्थितियों में भी हौसला ना खोना, अपने भीतर सभी के लिए समान भाव रखना, यह कुछ विशेषताएं हैं, जो किसी भी नेतृत्व करने वाले को बाकी लोगों से अलग करती है।
      किसी व्यक्ति विशेष का अनुसरण  न करके न्याय सिद्धांतों को हम पहचाने, किसी पर  अनुचित दबाव न बनाएं वह अनुचित दबाव सहन भी ना करें। 
     पूर्ण समर्पण से, साक्षी भाव से, केवल प्रभु की शरणागति होकर, जो महामंगल को ही प्रदान करती है, अन्य शरण न ले।
     पर जब नेतृत्व करें, तो विनम्र भाव से जो भी अपने समक्ष है, उसे अवश्य समझने का प्रयास करें, समय की प्रतीक्षा करें, धैर्य रख, समय आने पर निर्णय करें, निर्णय भूमिका में हम रहे ना रहे, 
प्रभु को निर्णय करने दे, बस पूर्ण साक्षी भाव से अपने कर्तव्य को गति प्रदान करते रहे।
    जब हमारे मानस में केवल वे प्रभु होते हैं, वह स्वयं हमें प्रेरणा प्रदान करते हैं।
      सत्य को बताने होने पर अगर सामाजिकता को कोई हानि पहुंचती है, तो उसे उजागर न करें।
      मगर अगर सत्य सामाजिकता के हित में, सामाजिक नियमों के अनुकूलता को परिपालन हेतु कहा गया है, यह कहां जाना चाहिये, तो सड़े हुए शब्दों में भी अपनी बात को रखना ही चाहिये।
सही नेतृत्व करता कोई भूल नहीं करता, ऐसा नहीं है, मगर वह अपनी भूलों से सीखता है, उनका परिमार्जन करता है, शोधन करता है।
       हमारे आचार, विचार व व्यवहार में एकरूपता का अभाव हमें पतन की ओर अग्रसर कर देता है, हमें उससे बचना चाहिये।
        वाणी का प्रयोग हम समाज के हित संवर्धन के लिए करें,
सकारात्मक रूप से हम कार्य करें , साथी जो नकारात्मक शक्तियां है उनका विरोध भी अवश्य करें, जैसे खेत में हम फसल होते हैं, तो खरपतवार भी साथ में उग जाती है, परम फसलों को नुकसान ना इसलिए कीटनाशक डालकर खरपतवार को नष्ट करते हैं, इस प्रकार एक नेतृत्वकर्ता को चाहिये कि वह नैतिक मूल्यों का समर्थन करें वह अनावश्यक खरपतवार का उचित उपचार करें। 

विशेष:- एक नेतृत्वकर्ता में समर्थन कब करना है, कब नहीं, यह चेतना अवश्य होना चाहिये, क्योंकि चेतना से जो पूर्ण होगा वही सही निर्णय कर भी सकेगा।

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