स्थित प्रज्ञ

प्रिय पाठक गण,
      सादर नमन, 
आप सभी को मंगल प्रणाम, आप सभी को प्रवाह की इस मंगल मयी यात्रा का आनंद आ रहा है या नहीं।
         आज हम बात करेंगे, "स्थित प्रज्ञ" , स्थित प्रज्ञ शब्द का जो वास्तविक अर्थ है, वह  है अपनी प्रज्ञा  में स्थित होते हैं, आंतरिक चेतना में होते हैं, साक्षी भाव में होते हैं।
      जो भी घट रहा है, वह प्रकृति द्वारा रचित मंगल विधान है, क्रिया की प्रतिक्रिया समय आने पर अवश्य होती है।
         स्थित प्रज्ञ होने पर आपके निर्णय सही होने लगते हैं।
क्योंकि वह निर्णय  राग व द्वेष से परे होकर, तात्कालिक परिस्थितियों के संपूर्ण अध्ययन के बाद लिये जाते हैं।
       इस प्रकार से  जब हम समग्र अध्ययन करते हैं, तो हमें ज्ञात होता है, कौन सी दिशा  में हमें चलना चाहिये? 
        सामाजिक हित संवर्धन किस प्रकार हो? किस प्रकार से हम सामाजिक ताने -बाने को हम स्वस्थ रखें, अपने विचार, कार्य  व आचरण द्वारा , भले ही हम कुछ भी कहे, सबसे अधिक प्रभावी हमारा आचरण हीं होता है।
      समाज में रहते हुए सामाजिक सद्भावना किस प्रकार से बड़े, 
उसमें उत्तरोत्तर वृद्धि हो  , ऐसे प्रयास अवश्य ही किये जाना चाहिये, हम इसे अपना सामाजिक कर्तव्य बोध समझे व अनजान ना बने रहे।
      स्थित प्रज्ञ का मतलब यह नहीं कि हम केवल देखते रहे, 
स्थित प्रज्ञ यानी स्थितियों को साक्षी भाव से देखने के उपरांत किसी निर्णय पर पहुंचना, यह आवश्यक है। 
       अपनी प्रज्ञा में स्थित होकर हम अपना व्यक्तिगत धर्म जो परिवार का पालन पोषण है, वह तो करें ही, साथ ही सामाजिक धर्म या दायित्व, उनकी भी अन देखी ना करें, अपने आप को सही मार्ग पर रखते हुए समाज को भी दिशा प्रदान करें। 
     सामाजिक नियमों को शक्ति प्रदान करना, जो सामाजिकता के विरुद्ध है, उनकी अवहेलना व जो सज्जन है ,उनको संगठित करना व उससे प्राप्त शक्ति का सदुपयोग सामाजिक हित  में 
करना, यह आंतरिक भाव सदैव जागृत रहना यह बोध हमें होना ही चाहिए। 
     इसका उदाहरण हमें भागवत गीता में प्राप्त हो जाएगा, जब श्री कृष्णा अर्जुन  को कहते हैं कि तू विषाद करने के योग्य नहीं है, 
अपना धनुष बाण उठा और युद्ध कर, वे उसे अपने मूल धर्म  का निर्वहन करने के लिए प्रेरित करते हैं। इस प्रकार हम परिवार में , समाज में स्थित प्रज्ञ होकर , अपनी मूल 
प्रज्ञा में स्थित होकर, तब सारे कार्यों को अंजाम दे। 
     जब हम स्थित प्रज्ञ होते हैं, तब हमारी प्रज्ञा सही दिशा की और  कार्य करती है, सारी स्थिति बिल्कुल साफ दिखाई देती हैं। संपूर्ण परिदृश्य का सही अवलोकन हम कर पाते हैं।

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