समत्व-भाव

प्रिय पाठक गण,
          सादर नमन, 
आप सभी को मंगल प्रणाम, 
    अपने-अपने निज कर्म में जो भी समत्भाव  से प्रतिष्ठित है,
जिनमें न राग है, न द्वेष है, मानो वह प्रत्येक व्यक्ति श्री कृष्ण की शरण में ही है।
        जब कोई भी व्यक्ति राग  व द्वेष दोनों से ही परे होकर 
अपने करते हुए पथ पर अविचल भाव से बढ़ते जाते हैं, वे भगवान श्री कृष्ण अपने भक्तों का पथ प्रदर्शन करते हुए बढ़ते जाते हैं, तब वह मनुष्य इस संसार में रहता हुआ भी मानव परमात्मा के निकट ही है। 
      सम बुद्धि प्राप्त योगी राह में आने वाली बाधाओं से विचलित नहीं होता है, क्योंकि उसने परमात्मा का आश्रय ग्रहण कर लिया 
हैं, फिर वह संसार में सभी का आश्रय त्याग कर अपने निज कर्तव्यों को ईश्वरीय कृपा से पूर्ण कर लेता है।
     उसके मार्ग की समस्त बाधाएं ही मानो उसका मार्ग प्रशस्त करते हए चलती है, जो सत्य- पथ का अनुसरण करते हैं, वह भयभीत नहीं होते, कोई उन्हें डिगा नहीं सकता।
       भगवान श्रीकृष्ण गीताजी में स्पष्ट रूप से यह उद्घोषणा कर रहे हैं। 
      वे अपने निज कर्तव्य में स्थित रहने की बात कर रहे हैं, जो भी व्यक्ति अपने निज कर्तव्य को ईमानदारी से पूर्ण करता है, वह परमपिता परमेश्वर समस्त प्रकार की बाधाओं को हटाता जाता है।
आंतरिक दृढ़ता से जो परिपूर्ण होते हैं, वह परमपिता का आश्रय ग्रहण करते हुए समस्त प्रकार से अपने निज कर्तव्य को पूर्ण करते हुए परम पद के अधिकारी हो जाते हैं। 
        उनके जीवन में आत्म प्रकाश हो जाने से फिर वह समस्त प्रकार के मोह को त्याग कर भगवान श्रीकृष्ण की अनन्य शरण में हो जाते है। जिनकी शरणागति मात्र समस्त संशयो को हटाने 
वाली है। उन परमपिता को अनन्य भाव से नमन करते हुए हम अपने मार्ग पर आगे बढ़ते रहे, अपने आचरण में दृढ़ता बनाए रखें, अविचल  होकर अपने मार्ग पर हम बढ़ते जाये , मार्ग की बाधाओं का स्वत: ही शमन होने लगेगा।
       जिस किसी पर भी भगवान की अनन्य कृपा होती है, यत्र तत्र, सर्वत्र उसकी जयकार होती ही है, समस्त प्रकार के  आश्रय छोड़कर  श्रीकृष्ण शरणागति को जो ग्रहण कर लेते हैं।
     सहस्त्रों सूर्यो सी प्रबल उसकी ऊर्जा होती है, वह अपने पथ पर बढ़ते जाते हैं, भक्ति भाव उनके हृदय में गहरा होता है, श्री कृष्ण की शरण में जो होकर चलते हैं। 
      वे अपने समस्त कर्मों को उनके अर्पण कर देते हैं , वह भय व शोक को इसी जीवन में छोड़कर उनकी अनन्य शरणागति को प्राप्त कर समस्त बाधाओं को पार कर लेते हैं।
     अपने पथ को स्वयं चुनते हैं, बाधाओ को हटाकर युद्ध में, संग्राम में विजय को प्राप्त करते हैं। 
         अन्य शरणागति का आश्रय ग्रहण करने वाले समस्त प्रकार की शंकाओं का निवारण कर लेते हैं।
       किसी कारणवश अगर वह मार्ग का अनुसरण मोहवश नहीं कर पाते , तो वह पतन को प्राप्त हो जाते हैं। भयमुक्त होकर इस संसार सागर में वे विचरण करते हैं।
विशेष:- आपका अपना जो भी मूल कर्तव्य है, वह अपनी संपूर्ण ईमानदारी से करिये, शेष उस प्रभु पर छोड़ दीजिये। सत्यमेव जयते। 
आपका अपना 
सुनील शर्मा 
जय भारत, 
जय हिंद।

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