जीवन एक यात्रा

प्रिय पाठक गण,
     सादर वंदन, 
हम सभी का जीवन एक यात्रा है, इस यात्रा मे हमें कई प्रकार के अनुभव से गुजरते हुए इस यात्रा को करना होता है । हमारी इस यात्रा के मार्ग में हमें हमारा स्वार्थ व परमार्थ दोनों में एक संतुलन बनाए रखना होता है ।
           सभी के जीवन के अपने अनुभव है, क्योंकि सब की यात्रा भी तो अपनी स्वयं की यात्रा है, इस यात्रा के दौरान कई बार हमें स्वार्थ भी घेरता  है, परमार्थ भी हमें पुकारता है, द्वंद हमेशा मानव मन में चलता ही है, क्या करें? क्या न करें, अंततः पूर्ण साहस करके जब हम किसी भी लक्ष्य को धारण कर ले, उसे लक्ष्य पर हम अपनी संपूर्ण ऊर्जा को लगा दें, चाहे फिर वह परमार्थिक हो या सांसारिक, पूर्ण ऊर्जावान होकर, संकल्पित होकर जब हम आगे बढ़ने लगते हैं तो मार्ग की बाधाएं ही हमारा मार्ग प्रशस्त करती नजर आती है।
         मानवीय जीवन हम जी रहे हो, और हमारे जीवन में संघर्ष उपस्थिति ही न हो, ऐसा तो संभव ही नहीं, पर जो भी संघर्ष हमारे जीवन में आते हैं, वह एक परिवर्तन की दस्तक अवश्य लाते हैं, बगैर किसी भय के, अपने चुने हुए मार्ग पर दृढ़तापूर्वक चलना, 
यही मानवीय धर्म है, केवल स्वार्थ वश हम किसी भी कार्य को न करें, तो सृष्टि भी हमारी सहायता अवश्य करती है।
        किस समय क्या घटेगा?  यह तो केवल परमात्मा जानते हैं, 
हमारा कर्म केवल पूर्ण सजगता से अपने जीवन को जीने का प्रयास होना चाहिए।
       अगर हमारा कोई भी कर्म जो हम करने जा रहे है, वह हमें भीतर से एक आनंद की, उल्लास की अनुभूति करवा रहा है, तो निश्चित ही वह एक श्रेष्ठ कर्म है, परमेश्वर ने हमें सामान शक्ति, समान अवसर, आगे बढ़ने की योग्यता, सभी प्रदान किए हैं। 
         मगर द्वंद की स्थिति होने के कारण हम उससे वंचित रह जाते हैं। 
      हमारे मनोभावों को हम पूर्ण ध्यान पूर्वक, होश पूर्वक देखने का अभ्यास करें, इससे हमें यह परिणाम प्राप्त होगा कि स्वयं का दोष कहां है? वह हमें दिखेगा व हम उसका परिवर्तन कर सकेंगे ।
       एक विशिष्ट ऊर्जा हम सभी के भीतर होती है, यह विशिष्ट ऊर्जा ही हमारे सारे जीवन व जीवन चक्र का मूल है, यहां हर व्यक्ति में भिन्नता है, तो सभी की मूल ऊर्जा भी भिन्न होगी। 
      हम अपने भीतर छिपी उस विशिष्ट ऊर्जा को पहचाने वह पूर्ण ईमानदारी पूर्वक उस पर कार्य करें, 
       पूर्ण ईमानदारी से मंथन करने पर हम पाएंगे कि वह विशिष्ट ऊर्जा ही हमारे जीवन को संभाले हए हैं 
    हम सभी में प्रकृति ने कुछ ऐसा विशिष्ट गुण तो दिया है, जो अन्य में नहीं, उसे ढूंढे, तराशे, जितना आप मौलिक गुण को 
 तराशेगे, उतने ही सुंदर परिणाम की हमें प्राप्ति होगी।
विशेष:- अपने भीतर छिपी अंदर न शक्ति को हम स्वयं पहचाने वह उस पर कार्य करें, अंततः हम उसे विशिष्ट गुण के कारण सदैव रक्षित होंगे। 
सब में मौलिक गुण अलग-अलग ही है, हमें प्रकृति में जो हषप, गुण दिया है, वह किसी अन्य को नहीं। 
आपका अपना 
सुनील शर्मा 
जय भारत 
जय हिंद। 



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