सादर नमन,
आप सभी को मंगल प्रणाम,
आज कुछ थोड़ा हटकर प्रयास कर रहा हूं, उम्मीद है पहले की तरह इस बार भी आप मुझे सराहेंगे, अगर मैं लेखन कर रहा हूं, तुम मेरा पहला धर्म समाज के प्रति है, क्या होना चाहिये? क्या हो रहा है? इसका तार्किक विश्लेषण करना मेरा प्रथम कर्तव्य है।
हम भारतीय दरअसल भावनात्मक होते हैं, भावनात्मक होना कोई बुरी बात नहीं, इससे हमारे इंसान होने का पता लगता हैं,
मगर हमारी भावना से किस प्रकार खिलवाड़
धर्म की आड़ में मूल धर्म पर से ध्यान हटा देना, यह तो उचित नहीं।
जैसे धर्म के चार चरण धर्म अर्थ,काम, मोक्ष है। वैसे ही नए संदर्भ में हमें सामाजिकता के चार चरण स्थानीय, प्रादेशिक, देश व विश्व इन चारों चरणों में देखना होगा।
तो मजे की बात तो यह है के स्थानीय समस्या पर बात करते-करते कब हम प्रदेश ,
देश व विश्व पर चर्चा करने लग जाते हैं, हमें पता ही नहीं चलता।
अभी स्थानीय स्तर पर महाराजा यशवंतराव अस्पताल में जो घटना घट रही है,
विगत कुछ दिनों से उस मात्र राजनीतिक लोगों ने ही इसका विरोध किया, जब व्यवस्था इतनी तार -तार हो चुकी है, तब क्या जिम्मेदार नागरिक होने की नाते हमारा भी कर्तव्य नहीं
बनता कि पूरे मामले में जो भी सच हो सामने आये, इस पूरे प्रकरण में जो भी सत्य हो सामने आना ही चाहिये।
किस प्रकार स्थानीय, प्रदेश , देश व विश्व यह चार स्तंभ भी हमारी सामाजिक व्यवस्था के अभिन्न अंग है।
और इन चारों पर ही पैनी निगाह रखना
वह क्या आवश्यक सुधार इन चारों व्यवस्था में हो सकते हैं, वह हमें करना ही चाहिये, और इसकी शुरुआत हम सवाल पूछने से कर सकते हैं, यह एक समझदार नागरिक होने के
नाते हमारा कर्तव्य भी है, और इसकी परिपालना हमें अवश्य करना चाहिये।
विशेष:- अगर हम केवल मूक दर्शक ही बने रहे, तो फिर व्यवस्थाओं कोसने का भी हमारा अधिकार नहीं है, हमें पूर्ण ईमानदारी से इस बात की पैरवी करना चाहिये , जो भी सच हो वह सामने आये।
आपका अपना
सुनील शर्मा
जय भारत,
जय हिंद,
वंदे मातरम।
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