सादर नमन,
आप सभी को मंगल प्रणाम,
उस परमपिता को भी मंगल प्रणाम, आज प्रवाह में हम बात करेंगे, लयबद्धता, यह संपूर्ण सृष्टि एक दूसरे से लयबद्ध है, यहां कुछ भी अकारण नहीं होता, सूर्य, चंद्रमा, पृथ्वी, यह संपूर्ण ब्रह्मांड एक दूसरे पर निर्भर है, इसमें कोई स्थिर है ,व कोई चलता है, मगर उनका अनुपात तय है, सब अपनी-अपनी सीमाओं में अपना कार्य करते हैं, सूर्य नित्य प्रतिदिन जिस प्रकार से आता है, वह तय है, चंद्रमा 15 दिन बढ़ता है, 15 दिन घटता है, से कृमश: हम शुक्ल पक्ष और कृष्ण के नाम से जानते हैं, इसी प्रकार मंगल ,बुध, राहू, केतु, गुरु, शुक्र
इत्यादि सब ग्रह समय-समय पर अपना प्रभाव दिखलाते हैं, यह जो हमारा शरीर है, यह भी संपूर्ण ब्रह्मांड का एक छोटा सा अंश है, हम चाह कर भी ब्रह्मांड किसी गतिविधि से अलग नहीं हो सकते, यह संपूर्ण ब्रह्मांड एक दूसरे से
ओत-प्रोत है, भले ही हमें इसकी लयबद्धता का पूर्ण ज्ञान न हो, मगर इसके अपने नियम है अवश्य, और यह उन्हीं नियमों पर कार्य करता है।
हम कितना भी प्रयत्न कर ले, वह ब्रह्मांड अपने हिसाब से ही कार्य करता है, कब किस समय क्या होना है, किस प्रकार से घटना है, वह सब हमारी सोच से भी परे है, कुछ विधान हम नहीं जानते, मगर वह होता उसी लयबद्धता से है, सृष्टि का यह कम आदिकाल से चलता आ रहा है, हमारा संपूर्ण शरीर भी इसी ब्रह्मांड का एक छोटा सा अंग है, अगर हम अपने शरीर पर ठीक ढंग से कार्य करें, तो चुकी हम इसी ब्रह्मांड का एक छोटा सा हिस्सा है, अगर हम अपने शरीर के परिचालन को सीख जायें तो हम स्वयं अपने आप को जानने लगेंगे, जैसे ही हम अपने भीतर की और अग्रसर होंगे, एक दिव्य चेतना हमारे भीतर घटती है, और वह हमें उस संपूर्ण ब्रह्मांड से एकाकार व लयबद्ध कर देती है,
जैसे ही हम उसे दिव्य चेतना के संपर्क में
आते है, उसे सृष्टि की लय से हमारी लय मिल
जाती है, फिर सहज ही हमारे सारे कार्य होने
लगते हैं।
अगर हम बहुत गौर से चीजों को समझें, तो जब हम कोई पुराना गीत संगीत सुनते हैं, तो हमें उसकी लयबद्धता का आभास होता है।
क्योंकि वह गीत अपनी संपूर्ण चेतना में रचे गये हैं। यह संपूर्ण संसार एक लयबद्धता के अनुसार ही कार्य करता है, हम चाह कर भी इसके नियमों को बदल नहीं सकते, यही इसकी खास बात है, तो कोशिश करिये हम इस लयबद्धता से एकाकार हो सके। आप और हम सभी कोशिश करें इससे तादात्म्य स्थापित कर सके।
विशेष:- हम चाहे ना चाहे, यह संपूर्ण ब्रह्मांड एक नियम के तहत चलता है, इसकी अपनी लय है, इसका एक अपना तरीका है, जो प्राचीन वैज्ञानिक या ऋषि हुए, उन्होंने अपने गहन अनुसंधान से जो भी जाना वह हमें दिया। इस बारे में प्रकृति से बड़ा कोई शिक्षक नहीं, आप देखिये किस प्रकार वह अपने नियमों पर कार्य करती है, वह किसी से भी भेदभाव नहीं करती, और यही उसकी लयबद्धता है।
आपका अपना
सुनील शर्मा
जय भारत
जय हिंद
वंदे मातरम।
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