आत्म शक्ति

प्रिय पाठक गण,
     सादर नमन, 
            आप सभी को मंगल प्रणाम, प्रवाह की इस मंगलमय व अद्भुत यात्रा में आप सभी का हृदय से स्वागत।
      आज हम बात करेंगे, आत्म शक्ति पर, हमारी आत्म शक्ति ही, हमें संघर्ष जीवन के जो भी हमारे सामने उपस्थित होते हैं, उन संघर्षों 
 में हमें विजय श्री प्रदान करते हैं, स्थितियां चाहे कितनी ही प्रतिकूल ही क्यों न हो, प्रबल आत्मविश्वास हमें उन सभी से पार करता है, 
            प्रबल आत्क्तिमविश्वास द्वारा ही हम परिस्थितियों का सामना करते हैं, अपनी आंतरिक शक्ति को हम कभी भी क्षीण न होने दे, वह आत्म शक्ति ही हमें समझ प्रदान करती है, धैर्यता देती है।
       अनुकूल परिस्थितियों सदैव नहीं होती, 
प्रतिकूल परिस्थितियों भी सदैव नहीं होती,
अनुकूल व प्रतिकूल दोनों ही परिस्थितियां जायेगी, समय ने जो लिख रखा है, वह तो अवश्य घटेगा, घटनाक्रमों से विचलित न होते हुए अपने प्रयासों में निरंतरता बनाये रखें।
          बुद्धि पूर्वक, श्रद्धा पूर्वक, मनोयोग से हर पहलू को हम देखें, जांचे, परखे, फिर हम आगे बढ़े, व्यवधान कोई भी हो, अधिक समय तक वह रहने वाला नहीं, किसी भी निर्णय को लेने से पहले उसके सभी पहलुओं पर विचार करें, तो हम निर्णय ले सकेंगे। 
     अगर हमारी दिशा सही है, तो प्रयत्न करते रहने पर हमें परिणाम अवश्य प्राप्त होंगे।
  कर्म की गति बड़ी ही गहन हैं, आप और हम कई बातों का निर्धारण नहीं कर सकते, कई कर्म सूक्ष्म होते है, कई कर्म हम जानते ही नहीं, सही है अथवा नहीं?    फिर भी हम कर देते हैं, इस प्रकार हम काल व परिस्थितियों के आधीन होते हैं, कई बार हमें सब पता होता है, पर हम विरोध करने की स्थिति में नहीं होते हैं।
     इस कलि- काल में केवल नाम सुमिरन ही हमें समस्त प्रकार के तापों से मुक्त कर सकता है, अन्य कोई भी उपाय है ही नहीं।
     भगवान  का नाम सुमिरन करने पर हम आंतरिक रूप से जागृत होते हैं, हमारे द्वारा 
फिर  कोई गलत आचरण नहीं होगा ,
क्योंकि परमात्मा का नित्य सुमिरन हमें धीरे-धीरे सही मार्ग की और ले जाता हैं, जिससे हमारा जीवन-पथ आलोकित होने लगता है।
        जिनकी कृपा मात्र से अनेकों प्रकार के
संकट स्वमेव हटने लगते हैं, परमात्मा हमें स्वयं प्रेरित करने लगता है, वह अपने भक्तों पर पूर्ण दृष्टि रखते हैं, जो आंतरिक भाव से प्रभु से जुड़ जाता है, उसकी सारी समस्याएं फिर प्रभु स्वयं हल करने लगते हैं, निस्वार्थ भाव से उनका सुमिरन अत्यंत ही मंगलकारी होने लगता है।
      नित्यप्रति उनकी मंगल शरण में रहने से फिर सब मंगल ही होगा , ऐसे परमेश्वर की हम नित्य शरणागति हो, उनका परम वंदन करते रहे। अपने नित्य कर्तव्य कर्मों को करते हुए भी हम उनका लीला गान करते रहे, यही एकमात्र मंगल उपाय है, जो हमें हर प्रकार के दोषो से रहित करता जाता है।
         हमारे सारे कर्म उसकी मंगल कृपा से भस्म हो जाते हैं, जीवन हैं, तब तक हमें जीना तो होगा ही, युक्ति युक्त तरीके से, उनकी मंगलमय शरणागति होकर रहे, उनके मंगल आश्रय में  रहे।
       जो भी घटे, वह उनकी असीम अनुकंपा से घटे, मंगल हो या अमंगल, जो भी प्रभु की इच्छा हो, वह हो, ऐसी अनन्य शरणागति भाव से जीवन की  डोर हम उनसे बांध ले।
       आत्मबोध हो जाने पर फिर हम चाहे गृहस्थाश्रम में हो, अपने निजी कर्म को करें,
कहीं भी रहे, परम कृपा शरण  में रहे।
    नित्य उनकी मंगलमय कृपा का अनुसरण करते रहे। 
     नित्यं ध्यायंते योगिन:, योगी  जन  जिनको नित्य भजते हैं, भक्तजन जिनकी कृपा का सदैव अनुभव करते हैं, कर्मयोगी अपने कर्म द्वारा जिनका मंगलमय आचमन करते हैं,
इस प्रकार इस संसार सागर को पार करने में हम सक्षम नहीं, उनकी मंगल कृपा का नित्य अनुभव करते रहे, सांसों में वह बसा है, हर क्षण उसका मंगल सुमिरन चलने दे।
       परमात्मा का सुमिरन करते रहें, उसकी कृपा सदैव बरस रही है। 
विशेष:- अपनी आंतरिक आत्म शक्ति को कभी भी क्षीण न होने दे, संसार में जो भी सफल हुआ है, चाहे वह किसी भी क्षेत्र में हो,
उसकी मंगलमय कृपा आधार बिना कुछ संभव ही नहीं है, परमेश्वर आप सभी पर कृपा करें, हम सभी चाहे या ना चाहे, उसके आधीन है, जो भी घटे, वह मंगल ही घटे, यही मंगल कामना। 
आपका अपना 
सुनील शर्मा 
जय हिंद, 
जय भारत, 
वंदे मातरम।

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