समसामयिक ( बिहार चुनाव)

प्रिय पाठक गण,
    सादर नमन,
आप सभी को मंगल प्रणाम, 
    देश में बिहार चुनाव पर चर्चा चल रही है,
एक बात जो राजनीति में देखने को मिल रही है, वह है व्यर्थ का धन प्रदर्शन व बाहुबल का
प्रदर्शन, बिहार राज्य क्या देश से अलग है?
    जो बिहार की अस्मिता के नाम पर लड़ा जा रहा है, यह तो भावनात्मक शोषण है, कभी महाराष्ट्र में भाषा के नाम पर, बिहार में बिहारी अस्मिता के नाम पर, इस तरह तो भारत देश विखंडन की राह पर चलेगा। 
     सभी पक्ष विपक्ष के राजनीतिक दल क्या अपनी-अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षा में देश को पीछे करेंगे। 
   इतने सालों बाद भी देश में कई ऐसे मुद्दे हैं,
जो बहुत ही गौर करने लायक है, हां, पर प्रशांत किशोर जी का यह कथन की बिहार में अभी तक तरक्की जिस तरीके से होना चाहिए थी, वह नहीं हुई, स्थानीय रोजगार और शिक्षा पर कार्य नहीं हुआ, वह सही है, पर इसके लिए राजनीतिक दल सभी चाहे वह पक्ष में हो या विपक्ष में ,दोषी तो है। 
     देश में राजनीतिक दलों को भी एक सर्वमान्य नियमों को अपनाना चाहिए, जो भी कार्य देश हित में स्थानीय आवश्यकताओं के अनुरूप हो, उन्हें महत्व प्रदान करना चाहिए। 
जब तक देश में एक सर्वमान्य नीति जो भी इस देश के संपूर्ण हित में हो, नहीं तय की जाती, देश में अभी भी सुधार की गुंजाइश है। 
     वर्तमान समय में राजनीतिक परिदृश्य में 
जो आरोप व प्रत्यारोप लगाए जाते हैं, क्या हमें उनसे कोई दिशा प्राप्त हो रही है? 
      शिक्षा, रेलवे, डाक सेवाएं, बैंकिंग यह ऐसे विभाग है, जिन पर सरकार का नियंत्रण होना जरूरी है। 
   हर किसी विभाग का निजीकरण होने से जो सरकार का नियंत्रण है ,वह समाप्त होता है, और यह स्थिति देश हित में उचित नहीं कहीं जा सकती। 
     स्थानीय रोजगारों को प्रथमिकता, व्यवसाय में छोटे, घरेलू व मंजुले उद्योगों को प्रोत्साहन जरूरी है। 
     देश में संसाधनों की कमी नहीं है, नेतृत्व   वर्तमान में  क्या सबसे बेहतर हो सकता है? 
उस पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता है,
आज देश में राजनीति में दिखावे पर जितना खर्चा किया जाता है, उतना ही अगर संसाधनों का सही प्रयोग करने पर किया जाये, तो तस्वीर कुछ और हो सकती है।
     भारतीय राजनीति का एक अलग परिवेश है, अलग-अलग प्रांत, उनकी अलग समस्याएं, जब तक स्थानीय समस्याओं का सही समाधान नहीं निकाला जाता, उन्हें प्राथमिकता नहीं प्रदान की जाती, तब तक दिक्कतें आती ही रहेंगी।
   बिहार में पहली बार राजनीतिक मैदान में उतरे श्री प्रशांत किशोर जी ने "जन-सुराज"
के माध्यम से जो सवाल उठाये हैं, वह निश्चित ही प्रासंगिक तो लगते हैं, अब देखना यह है जनता कितना उनका समर्थन करती है, वैसे भी बिहार क्रांतिकारी परिवर्तनों का गढ़ है, किसी समय श्री  जयप्रकाश नारायण ने भी यही से राजनीतिक बदलाव की शुरुआत की थी, जब आपातकाल के बाद उन्होंने जनता दल का गठन किया था, अब फिर वैसी ही बदलाव की आहट बिहार में सुनाई देने लगी हैं। इस समय श्री प्रशांत किशोर जी ने जान स्वराज के माध्यम से जिन विषयों को जन सुराज के माध्यम से उठाया है, वह निश्चित ही जनता को झकझोरते  तो है, मगर उनकी है बातें जनता के वोटो के रूप में तब्दील कैसे होगी, यह एक देखने लायक बात है, वैसे हमारे देश की जनता कई बार चौंकाने वाले फैसले करती रही है, और इस मामले में जनता निसंदेही कई राजनीतिक दलों के
अनुमानो को ध्वस्त कर चुकी है, अगर जनता ने परिवर्तन का मन बना लिया है, तो प्रशांत किशोर जी की जीत तय है, मगर क्या जनता बदलाव का मूड बना चुकी है, और अगर बदलाव का मूड बना भी है तो क्या वह जन सुराज के पक्ष में है, इन सब बातों का पता तो बिहार चुनाव पूर्ण होने के बाद जब परिणाम आएंगे तभी  पता चलेगा, अभी कुछ भी कहना जल्दबाजी होगी।
       सभी राजनीतिक दल जो नई-नई घोषणाएं जनता को पैसा बांटने की करते हैं, वह स्वस्थ लोकतंत्र की दृष्टि से तो कतई उचित नहीं है, एक तरीके से यह तो अपरोक्ष रूप  से वोटो की खरीदी ही है, मतदाता को जागरूक होना होगा, उसे प्रलोभनों से दूर रहकर जो सही स्थिति है और जो सही समाज हित में होना चाहिये, वही फैसला करना चाहिये।
      अगर देश में स्थानीय स्तर पर रोजगार के अवसर उपलब्ध कराया जाये तो इस प्रकार के
प्रलोभनो की आवश्यकता ही नहीं पड़ेगी।
    देश की जनता को भी समझना चाहिये,
हमारा कीमती मत बिकाऊ नहीं है, आत्म सम्मान व स्वाभिमान के साथ खड़े होने के लिए यह जरूरी भी है। 
    स्वस्थ प्रजातांत्रिक मूल्यों के लिये हमें स्वरोजगार वह स्थान स्तर पर क्या अच्छा हो सकता है, इस और ध्यान देने की आवश्यकता है।
      यही देश के मतदाताओं से उम्मीद है, अगर जनता सही तरीके से इस चीज को समझ जाये तो इस बार बिहार में हमें बहुत बड़ा बदलाव देखने को मिल सकता है। और इस समय देश में इसकी जरूरत भी है, स्थानीय स्तर पर अगर रोजगार के सही अवसर उत्पन्न किया जाये तो फिर बिहार क्या किसी भी प्रदेश में वहां के लोगों को बाहर नहीं जाना पड़ेगा। 
विशेष‌ - भारतीय राजनीति एक परिवर्तन के दौर से गुजर रही है, जनता को भी चाहिए कि वह सही परिपेक्ष्य में चीजों को देखे व समझे,
अब एक पुनर्निर्माण की और हम अग्रसर हो, 
और इसके लिए जरूरी भी है कि बदलाव अवश्य हो।







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