अधिकार व कर्तव्य

प्रिय पाठक गण,
     सादर नमन, 
आप सभी को मंगल प्रणाम, 
   हम सभी एक सामाजिक व्यवस्था में रहते हैं, वह उसके कुछ सामान्य से नियम हैं, एक बात जो हमेशा हमारे सामने आती है, वह है, 
की अधिकतम सभी अधिकारों की तो बात कहते हैं, मगर हमारे अपने कर्तव्य क्या है ?
          वह हम नहीं देखना चाहते, और यह किसी भी काल में संभव ही नहीं कि आप कर्तव्य तो पूरे नहीं करें और अधिकारों की बात करें।
       जो भी व्यक्ति अपने दायित्व या कर्तव्य ईमानदारी से पूर्ण करता है, उसे अपने अधिकारों की प्राप्ति तो स्वत: ही हो जाती है।
         जाने अंजाने में हम यह न्यायिक सिद्धांत भूल गए कि अधिकार प्राप्त ही तब होते हैं, जब आप अपने कर्तव्य को ईमानदारी पूर्वक निभाते हैं।
       यह दोनों ही एक ही सिक्के के दो पहलू हैं,  इन  दोनों का ही समान महत्व है। 
     जो भी अपने कर्तव्यों को पूर्ण ईमानदारी पूर्वक निभाता है, उसे अधिकारों को प्राप्त करने के लिए अतिरिक्त प्रयत्न नहीं करना
पड़ते, यह तो उसे स्वत:  ही प्रकृति द्वारा प्रतिफल में प्राप्त हो ही जाते हैं।
     हमारा स्वयं के प्रति, परिवार के प्रति, फिर समाज के प्रति, इस प्रकार से दायित्व या कर्तव्यों को को निभाना चाहिये, अधिकार तो 
हमें स्वयं प्रकृति ही प्रदान कर देगी। 
        यही तो खूबसूरती है, उस परमपिता के न्यायिक सिद्धांत की, हम चाहे किसी भी प्रकार से इन बातों की अनदेखी कर दें, मगर ईश्वर का न्यायिक सिद्धांत पूर्ण रूप से अटल है, उसमें हेर- फेर की कोई गुंजाइश है ही नहीं।
        हम अपने कर्तव्य व दायित्वों का ध्यान
रखें, उन्हें सही ढंग से निभाये, तभी हमें अधिकारो की प्राप्ति  भी होगी।
    जिस प्रकार से यह प्रकृति हम सभी पर समान रूप से कृपा करती है, भेदभाव नहीं करती, कोशिश करें, जो भी कार्य  हम अपने हाथों में ले, उसे पूर्ण निष्ठापूर्वक प्रयास अपनी ओर से निरंतर करते रहे।
    आपका निरंतर सही दिशा में किया गया प्रयास एक अद्भुत शक्ति  व सामर्थ्य  का निर्माण आपके भीतर करता है। आत्म बल व आत्मविश्वास से पूर्ण होने पर आपके अंदर एक दैवीय शक्ति  अपने आप ही जागृत हो जाती है।
       निरंतर प्रयासरत रहे, अपनी निष्ठा को,
   कर्म पूर्ण श्रद्धापूर्वक हम पालन करें, नित्य प्रयास करें, आंतरिक प्रेरणा से कार्य करें। 
    यह संपूर्ण ब्रह्मांड आपकी सहायता को
सदैव तत्पर है। 
    अधिकारों का प्रयोग सावधानी पूर्वक इस प्रकार करें, संतुलित नजरिया हमारा हो, किसी को भी भावनात्मक ठेस पहुंचाये बगैर हम अपनी इस यात्रा को अविरल जारी रखें, एक समय ऐसा अवश्य आयेगा, आपको अपने आप ही आभास होने लगेगा, अपने निज कर्तव्य को पूर्ण ईमानदारी पूर्वक निर्वहन करने पर हमें सभी उपलब्धियां स्वत:  ही प्राप्त होती जाती है। 
      अपने अधिकारों का सदुपयोग करें, दुरुपयोग नहीं, फिर आप देखेंगे, चमत्कारिक ढंग से आपका जीवन परिवर्तित होने लगेगा। 
   जैसे-जैसे हम परिपक्व होते हैं, जीवन की गहराइयों को समझते हैं, हमारा जीवन प्रकाशमय होने लगता है।
      आंतरिक शांति हमारी बढ़ने लगती हैं, व दिव्य प्रवाह, जो संपूर्ण सृष्टि का प्रेरक व रखवाला है, उसकी कृपा आप पर बरसने  लगती है।
    अंतर्मन में सद्भाव अगर जागृत हो रहा है, कोई प्रेरणा भीतर से उठ रही है, तो अवश्य ही दैवीय कृपा आप पर हो रही है।
    परिस्थितियों से घबराएं नहीं, वे तो आती जाती रहेंगी, अपना आत्मबल बनाये रखें,
व अपना मार्ग जो भी भीतर से आपने चुन
रखा है , उस परमात्मा की कृपा शरण होकर उसे करते रहे।
विशेष:- अपने कर्तव्यों को पूर्ण निष्ठा पूर्वक हम करते जाये, हमें अच्छे प्रतिफल ही प्राप्त होंगे, ऐसा कभी होता ही नहीं, आपके कर्म की दिशा सही हो और परिणाम विपरीत आये, आंतरिक रूप से चेतना को हमेशा जागृत रखें।
शेष परमात्मा पर छोड़ दें, कुछ हमारे व कुछ उस सृष्टि कर्ता के हाथों में है।
आपका अपना 
सुनील शर्मा 
जय हिंद 
जय भारत 
वंदे मातरम।

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