सादर नमन,
आप सभी को मंगल प्रणाम,
आज प्रवाह में हम बात करेंगे युवा वर्ग व समाज।
आज समाज में जो विकृति सबसे अधिक उत्पन्न हो रही है, वह है बगैर किसी
प्रयास के उपलब्धियां को पाने की चाह।
एक अजीब सी मृगतृष्णा में हमारा समाज आज है, नैतिक मूल्यों की जो गिरावट आज समाज में देखी जा रही है, वह युवा वर्ग को भी प्रभावित करती है।
सृष्टि में सब कुछ नियमानुकूल ही प्राप्त होता है, संघर्ष करने पर ही हमें प्रतिफल प्राप्त होते हैं, सबसे पहले मेरी युवा वर्ग से अपील है, वह पहले अपनी आदत को अवश्य बदले,
अगर वह सामाजिक रूप से सक्रिय नहीं है,
लोगों से मिलता जुलता नहीं है, तो सर्वप्रथम समाज में सक्रियता की आदत डालें, इसके साथ ही अच्छे साहित्य का अध्ययन अवश्य करें , अपनी अभिरुचि को किताबों या कोई भी कार्य, जो उसे भीतर से सुकून प्रदान करता है, उसे जीवन में अवश्य अपनाये।
हम जैसा भी सोचते हैं, आखिरकार हम उस दिशा में फिर कर्म भी करते हैं , व हमारे कर्म की दिशा सही होने पर परिणाम भी अच्छे ही प्राप्त होंगे।
युवा वर्ग को चेतना युक्त आचरण करना चाहिये, आज का समय कठिनतम प्रतिस्पर्धा का दौर है, तब तो युवाओं को और अधिक संकल्पबद्ध होकर सही दिशा में सक्रिय होना होगा, सदैव प्रयासरत रहे।
जीवन में अपने से जो भी अनुभवी लोग हैं, उनके पास कुछ समय अवश्य बिताये, उनके अनुभव हमेशा ही आपको कुछ बेहतर दिशा दे पायेंगे।
उनके अनुभव व वर्तमान की चुनौतियां,
जो निश्चित ही उनके समग्र अनुभव से मेल नहीं भी रखती हो, मगर फिर भी अनुभव तो अनुभव ही होता है, लोगों की परख करना भी उनसे सीखे।
जीवन में कोई ना कोई लक्ष्य अवश्य रखें, जो आपके भीतर से प्रेरणा प्रदान करें, फिर उस लक्ष्य प्राप्ति के लिए अपने आप को समर्पित कर दें।
युवा ही आने वाले समय में इस देश के
कर्ण धार है, उनमें सही दिशा बोध हो, इसके लिए समाज को भी जागरूक होना चाहिये, युवाओं का मार्गदर्शन करना चाहिये, उनमें सामाजिक व नैतिक मूल्यों के प्रति आस्था उत्पन्न करना, यह भी हमारा सामाजिक दायित्व है।
इस समय वर्तमान काल में युवा वर्ग धन प्राप्ति व भौतिक साधनों की प्राप्ति हेतु तो सजग है, व उन्हें प्राप्त भी कर लेता है, मगर मात्र भौतिक उन्नति की और ध्यान होने से
मानवीय जीवन के अन्य पक्ष सामाजिकता,
स्नेह व आध्यात्मिक चिंतन के अभाव में वह सब कुछ पास में होते हुए भी भीतर से एक रिक्तता का अनुभव करता है, पर इन सभी में उसका भी क्या दोष है? आज हम हमारी सामाजिक व्यवस्था को देखें, तो कथनी व करनी में जो अंतर है, वह अंतर ही वह जब देखता है, तो उसके भीतर एक आक्रोश का जन्म होता है।
हमारे सामाजिक मूल्यों का धराशायी होना न केवल हमारे लिये बल्कि आने वाली पीढ़ी के लिए भी अत्यंत घातक है, इस और ध्यान देने की आवश्यकता है, हम सभी उसी परमपिता के एक छोटे से अंश है, शांति की तलाश हम बाह्य साधनों में करते हैं, जबकि आंतरिक शांति हमेशा हमारे भीतर ही विद्यमान होती है।
युवा वर्ग को भौतिक व आध्यात्मिक जीवन के इन दोनों ही पहलुओं को समझना होगा, यह मानो एक ही सिक्के के दो विपरीत पहलू है, मगर अनिवार्य भी है।
युवा वर्ग समाज का एक अंग है, अगर वह आध्यात्मिक ऊर्जा से संपन्न न हुआ, तो सभी साधन होते हुए भी सामाजिक मूल्यों के अभाव में वह आंतरिक अतृप्ति का अनुभव हमेशा करेगा, व भीतर आंतरिक अशांति होने पर बाह्य साधनों की प्रचुरता भी उसे वह नहीं दे पायेगी।
उन्हें जीवन का संतुलन किस प्रकार वह करें, यह अनिवार्यतः सीखना ही होगा, हम सब समाज में रहते हैं, समाज से ही हम प्राप्त करते हैं, व समाज में ही हम सभी से मिलते हैं, व अपनी व्यवहार कुशलता के बल पर हम समाज में अपना स्थान बना लेते हैं, इसी
व्यवहार कुशलता का अभाव हम युवा वर्ग में आज देखते है।
उनके भीतर दायित्व बोध को जगाना,
कि हम समाज में रहते हैं, तो अपने साथ-साथ समाज के प्रति जो हमारा कर्तव्य है, वह भी हम करते रहे, प्रथम तो हम जीवन में कृतज्ञता को धारण करें, उस परमात्मा को धन्यवाद दें,
इस सृष्टि में, हमारे आसपास, परिवार व समाज के जो व्यक्ति हैं, उनके पति हृदय से कृतज्ञ हो, यही कृतज्ञता का भाव हमें आंतरिक शक्ति व शांति दोनों ही प्रदान करता है।
समाज में युवाओं को जुड़ना चाहिये,
समाज कल्याण मे ही हमारा भी कल्याण निहित है, छिपा है, यह समझ हमें युवा वर्ग में समाज के प्रति विकसित करनी होगी।
जब हम समाज से कुछ ले रहे हैं, तो हमारा यह कर्तव्य बनता है, हम समाज को भी कुछ दे, कृतज्ञता पूर्वक , अहोभाव से उनका धन्यवाद करें।
जीवन तो जीना ही है, मगर हम जीवन को किस प्रकार से, प्रज्ञा पूर्वक जिये, यह भी उतना ही महत्वपूर्ण है।
युवा वर्ग के भीतर हमें एक उत्साह का भाव, कृतज्ञता का भाव जगाना होगा, युवा पीढ़ी को दिशा बोध प्रदान करना , सामाजिक दायित्व भी हमारे जीवन का एक महत्वपूर्ण भाग है, उसकी कभी अनदेखी न करें।
विशेष:- युवा वर्ग को मात्र भौतिक साधनों से परिपूर्ण कर देना ही शिक्षा का व समाज का उद्देश्य नहीं होना चाहिये, उसका सर्वांगीण विकास, यानी उसके व्यक्तित्व का विकास
वह भी एक बहुत महत्वपूर्ण पहलू है, उन्हें सामाजिक परिवेश में किस प्रकार से रहना है,
समाज में आना-जाना, वह करते हुए कर्तव्य कर्मों को भी निभाना, जो सामाजिक व्यवस्था का एक अनिवार्य अंग है, समाज के प्रति कृतज्ञता का होना, यह युवा वर्ग के चरित्र का एक अनिवार्य अंग होना चाहिये।
आपका अपना
सुनील शर्मा
जय हिंद,
जय भारत,
वंदे मातरम।
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