सादर नमन,
परम वन्दन, आप और हम सभी उसी के आश्रय में है, यह चराचर जीव जगत इस एक सत्ता के आश्रय में है।
वे प्रभु कभी किसी को, कभी किसी को
निमित्त बनाकर कार्य करते हैं, मगर उनकी कृपा को समझ पाना हमारे बस में है नहीं,
वे जैसे चाहेंगे इस संसार सागर में आपकी गति को उधर ही मोड़ देंगे, जिसमें आपका हित हो, जब हम उनकी अनन्य शरण हो जाते हैं, तो वह लीलामय प्रभु भी फिर अपनी कृपा हम पर बरसाने लगते हैं।
जो परम भक्ति -भाव से, पूर्ण श्रद्धापूर्वक उनका स्मरण करते हैं, तो वह हमें अधोगति से निकालकर परम गति की और
हमें चलाने लगते है।
वह जब चाहे, तब संपूर्ण सृष्टि को आपके अनुकूल बना सकते हैं या फिर प्रतिकूल भी बना सकते हैं।
कब क्या घटता है? केवल वे ही जानते हैं,
हम सब तो केवल अपना- अपना दायित्व निभाते हुए उनकी शरणागत होकर रहे, नित्यप्रति जो भी परम मंगल भाव से वंदन करता है, उनकी शरण में रहकर जो कार्य करता है, वह इस भवसागर में तो मुक्त हो ही जाते हैं, उनके कृपा -आश्रय में होने से प्रतिकूलताएं भी अनुकूलताओं में बदल जाती है।
अपनी समस्त सफलताओं का श्रेय हमें उनके श्री चरणों में ही डाल देना चाहिये, वह जिसको भी अपनी मंगल शरण में लेते हैं, उसे फिर कभी भी वह नहीं छोड़ते, संसार में सभी हमसे केवल अपने अपने -अपने स्वार्थो की
पूर्ति हेतु ही हमसे बंधे होते हैं, मगर वह परमात्मा बिना किसी स्वार्थ के अपनी कृपा हम पर बरसाते हैं, निमित्त वे जिसे चाहे, उसे बना दे।
वे कृष्ण, कन्हैया, गिरधारी हम सभी की लाज रखने वाले हैं, वे बालकृष्ण, नटखट है, इस प्रकार उनकी चंचलता व नित्य मधुर होठों पर सदैव मुस्कान को वे धारण करने वाले हैं।
उनकी मुस्कान अति प्रिय व मधुर है, वह स्वयं भी बड़े ही मधुर है।
वह अपनी दिव्य शक्ति व माधुर्य से इस संपूर्ण जगत का संचालन कर रहे हैं, उनकी कृपा नित्य बरस रही है, मंगल कर रही है।
परम मंगल को प्रदान करने वाले, प्राणी मात्र को शरण में रखने वाले, परम माधुर्य जिनकी वाणी में है। जो चातुर्य से पूर्ण है, जो समस्त मंगल कामनाओं को पूरा करने वाले हैं
उनकी नित्य कृपा से ही सब कार्य पूर्ण हो रहे हैं, वही संसार के समस्त सुख वैभव को प्रदान करने वाले हैं, मंगल शरणागति द्वारा ही हम उनकी कृपा को पा सकते हैं, कोई भी अन्य उपाय नहीं है ।
इस संसार चक्र में हम सभी हैं, केवल उनकी मंगल कृपा के सिवा कोई भी अन्य द्वारा नहीं है।
सद्गुरु सबका मंगल करें, सब पर कृपा करें, वे परमात्मा सब पर कृपा करें, यही मंगल भाव, उनके श्री चरणों में हमें लेकर आता है।
हे परम पिता, परमात्मा, अगर हम यह समझते हैं, तो हम भूल कर रहे हैं, वह हमसे जो कार्य करवाना चाहता है, उसने हमें माध्यम बनाया है, यह उसकी मंगल कृपा ही तो है। हम जैसे कितने ही इस संसार में आए व गये,
मगर जिस पर उसकी कृपा बरसी, वह इस संसार सागर में रहते हुए भी उनकी कृपा से मुक्त हो गया।
वे प्रभु समय-समय पर किसी का मान बढ़ा देते हैं, कभी मान घटा भी देते हैं, वे जो भी करते हैं, भेद केवल वहीं जानते हैं, अगर सब कुछ हम जान ले तो फिर उस विराट सत्ता को कौन मानेगा? वे सबका मान रखने वाले हैं।
विशेष:- हम सभी का जीवन एक नौका की भांति है, हम सब संसार -सागर में है, वह उनकी कृपा बिना हम एक पग भी नहीं चल सकते, उनके मंगल कृपा में रहे, आनंद में रहे,
अपने प्रयास करते रहे, शेष परमात्मा पर छोड़ दे। आपका हित किस मे छिपा है, वे ही जानते हैं ।
आपका अपना
सुनील शर्मा
जय भारत,
जय हिंद,
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