एक कदम, भीतर की और

प्रिय पाठक गण,
    सादर नमन, 
आप सभी को मंगल प्रणाम, 
        हम हमारे सभी कार्य करते हुए भी अपनी आंतरिक शांति को बनाए रख सकते है, धीमे-धीमे हम अपने कदम मजबूती से बढ़ाते जाएं, जीवन में समन्वय की कला जिसे भी आ गई, फिर उसके लिए कोई भी कार्य इस जगत में, संसार में कठिन नहीं है, जो निरंतर जगरुक है, अपने भीतर व बाहर दोनों ही क्रिया कलापों में  पूर्ण होशपूर्वक अपने जीवन के निर्णयों को करता है, परिस्थितियों का सही तरीके से अध्ययन करता है, भूतकाल में की गई गलतियों से सबक सीखता है, वर्तमान क्षण में सही निर्णय को करता है, अपने आसपास घट रहे परिदृश्य का सावधानी पूर्वक जो अध्ययन- मनन करता है,
वह अपने इसी जीवन काल में समस्त उपलब्धियों को हासिल करता जाता है।
   दृढ़ निश्चय से बढ़कर जीवन में कुछ भी अधिक मूल्यवान नहीं है, मगर वह दृढ़ निश्चय, संकल्प अपनी स्वयं की आंतरिक शांति, घर में शांति व समाज में शांति किस प्रकार स्थापित हो?   किस प्रकार से हम समन्वय करे, कि स्वयं का, हमारे घर का, जहां हम रहते हैं, उस स्थान का व समाज का, इन सब बातों के बीच में आप कितना बेहतर तालमेल बिठा पाते हैं, उन सभी से कितनी खूबसूरती से समन्वय बिठा पाते हैं, जैसे-जैसे आप परिपक्व होंगे,
जीवन के अनुभव बढ़ने लगेंगे, और वही जीवन के जो निजी अनुभव है, वही आपकी सबसे बड़ी पूंजी है, भौतिक धन हमें एक बार प्राप्त होने पर वह कितने समय हमारे हाथ में  रहेगा, यह हमें भी पता नहीं होता है। 
     अगर आप किसी भी कला में माहिर हो या कोई ऐसा कर्म आप कर रहे हैं, जिसे आपने अपने जीवन में समय दिया है, तो वह कला आपके लिए वरदान है, क्योंकि वह आपकी ऐसी निजी संपत्ति है, जिसे आपने वर्षों की मेहनत के फल स्वरुप पाया है। 
       समाज के भीतर जो भी बुजुर्ग है, वे अपने अनुभवों की परिपक्वता के कारण 
आदरणीय व पूजनीय है, व हर परिस्थिति से जो उनके जीवन काल में उपस्थित हुई, उसका उन्होंने किस प्रकार धैर्य पूर्वक सामना किया, 
वह हमें इसका ज्ञान दे सकते हैं। जीवन में मात्र भौतिकता ,मात्र आध्यात्मिकता या केवल सामाजिक संबंध, यह तीनों ही अपने आप में अपूर्ण है, जब तक इन तीनों का सही तरीके से समन्वय हम अपने जीवन में नहीं करते, हम सही परिणाम नहीं प्राप्त कर सकते। 
        भौतिक साधन जीवन यापन के लिये,
आध्यात्मिक ऊर्जा हमें चेतनायुक्त रखने के लिये, सामाजिक सौहार्दपूर्ण संबंध हमें सामाजिक ऊर्जा से, सकारात्मक ऊर्जा से युक्त करते हैं, हम जितना इन बातों को गहराई से समझते हैं, उतना ही हमारा जीवन शांतिपूर्ण ढंग से चलने लगता है। 
      और स्वयं का अनुशासन इसमें सबसे अधिक महत्वपूर्ण है, जो भी व्यक्ति स्व अनुशासन का पालन करता है, वह अधिकतम उपलब्धियां को अपने इसी जीवन काल में प्राप्त कर सकता है।
         एक बार अपनी जीवन यात्रा में जो भी आप कर रहे हैं, सही तरीके से समझने का ईमानदार प्रयास आप अवश्य करें, आपके जीवन की दिशा एक सकारात्मकता की और जब बढ़ती है, तब आप अपना स्वयं तो सुधार करते ही हैं, कई अन्य लोगों के लिए मजबूत प्रेरणास्त्रोत भी आप बन जाते हैं।
      जितना हम गहन अध्ययन करेंगे, हमारे जीवन को उतना ही बेहतर हम कर पायेंगे,
इसमें तनिक भी संदेह नहीं, तो इस प्रकार तीन प्रकार की ऊर्जा, भौतिक, आध्यात्मिक, 
सामाजिक इस त्रिवेणी को हम अपने जीवन में स्थान दें, आपको फिर किसी अन्य त्रिवेणी स्नान की आवश्यकता ही महसूस नहीं होगी। 
      अगर इन तीनों का सही समन्वय आपने अपने जीवन में जिया है, व उस पर ईमानदारी पूर्वक आप चले हैं, तो आपका वर्तमान व भविष्य दोनों ही उज्जवल है।
     मानस में मंथन लगातार हम करते रहे, 
स्वयं का, जितना हम मंथन करेंगे, उतने ही अधिक मोती हमें प्राप्त होंगे।
विशेष:- अपने जीवन में अपने अनुभव, बुजुर्गों के अनुभव, स्वयं कुछ नया सीखने की ललक 
व युवा वर्ग से बेहतर तालमेल, अगर हम यह  50 से 70 वर्ष के बीच का जो समय है, वह जो उम्र के इस दौर से गुजर रहे हैं, वे यह कर पाये तो शेष जीवन बेहतरीन अंदाज में जीते हुए इस संसार से प्रयाण करेंगे।
आपका अपना, 
सुनील शर्मा, 
जय भारत, 
जय हिंद, 
वंदे मातरम।
 

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