सादर नमन,
आप सभी को मंगल प्रणाम,
आज प्रवाह में हम बात करेंगे, गरिमा यानी कि हर व्यक्ति का आदर, हर वह वस्तु भी जो हमें प्राप्त है, जो भी साधन हमें प्राप्त है, उनके प्रति आदरयुक्त होना, उन्हें सम्मान प्रदान करना, समय अगर अच्छा चल रहा है, तो पूर्ण गरिमा व विनम्रता से उसका भी सम्मान करें,
विपरीत समय का भी गरिमा पूर्ण तरीके से स्वागत करें, इसका कारण यह है कि विपरीत समय हमें सिखाता है, विपरीत समय हमें संघर्ष का मूल्य बताता है, तो उसे भी गरिमा हम प्रदान करें, विपरीत समय ही वह समय काल है, जब आपका व्यक्तित्व निखर रहा था, समय के संघर्ष से।
तपे बिना तो स्वर्ण में भी निखार नहीं आता, जो व्यक्ति जितने विविध अनुभव व कठिनाइयों से गुजरता है, वह उनसे सीख प्राप्त करता है।
सीढ़ी दर सीढ़ी उसकी यात्रा चलती है,
वह उस यात्रा को अपनी बुद्धिमत्ता, जिजीविषा व अथक परिश्रम द्वारा सार्थक बनाता है।
कोई भी व्यक्ति एक दिन में महामानव नहीं बनता, यह एक निरंतर चलने वाली यात्रा है।
हम सभी ईश्वरीय शक्तियों के मालिक हैं,
पर हम उनका सदुपयोग कर रहे हैं या दुरुपयोग, जो भी इन शक्तियों का स्वयं के लिये, परिवार के लिये, समाज के लिये
सदुपयोग करता है, अंततः वही विचारधारा ही उसे उस प्रकार के कर्म की और प्रेरित करती
हैं, व धीरे-धीरे वह अपनी उस यात्रा को वहां
तक ले जाता है, जिसके लिये आखिरकार उसका जन्म हुआ है, वह प्रेरणा उसे भीतर से प्राप्त होने लगती है।
यह सब अनायास नहीं होता, आंतरिक प्रज्ञा जब मनुष्य की जागृत हो जातीं है, तो वह गरिमामय जीवन स्वयं तो जीता ही है, अन्य सभी के लिये भी प्रेरणा का स्रोत बन जाता है।
शब्दों की भी गरिमा है, हम क्या सोच रहे
हैं? उसके पीछे का हमारा मूल हेतु क्या है?
क्या वह किसी के हित की भावना से प्रेरित है, या अहित के भाव से, जब भी हमारा हेतु स्वयं का स्वार्थ न होकर परमार्थ की शक्ति से प्रेरित होता है, हम भीतर से शक्ति युक्त होते हैं।
हमारी शक्ति व सामर्थ्य अगर हम स्वयं के, परिवार के वह समाज के संवर्धन में लगा रहे हैं, तो निश्चित इसके दूरगामी परिणाम आपकी गरिमा में वृद्धि करेंगे।
यह यात्रा कोई सामान्य यात्रा नहीं है, यह मानव के मानवीय परिष्कार की एक अद्भुत यात्रा है, जो भी अपने जीवन काल में यह तथ्य समझ जाता है, वह फिर अपने आप उस यात्रा की और खींचा चला जाता है।
कोई अज्ञात शक्ति आपको प्रेरणा भीतर से प्रदान करती जाती है, मार्ग प्रशस्त करती जाती है, और आप अपने पथ पर आगे बढ़ने लगते हैं। कोई तो ऐसी शक्ति अवश्य ही इस संपूर्ण ब्रह्मांड में विद्यमान हैं, जो इस संपूर्ण ब्रह्मांड का संचालन कर रही है।
हम और आप केवल निमित्त होकर अपनी अपनी भूमिकाओं का निर्वहन भर कर रहे हैं।
यह कितनी कुशलता पूर्वक व गरिमामय तरीके से हम कर पाते है , वही हमारी व सभी की यात्रा है, भीतर से बाहर की और, अंतः प्रेरणा से, स्वप्रेरणा से जागृति की और।
अपनी गरिमा सदैव बनाये रखें, कोई विपरीत भी आपसे जा रहा हो, जाने दे, कोई अनुकूल भी है, तो भी ज्यादा गर्व न करें।
दोनों ही स्थितियों में शांत चित्त रहे, व अपने मौलिक स्वभाव, जो प्रकृति ने आपको प्रदान किया है, दयामय, क्षमाशील, उसे धारण करके रखें।
जीवन में अनुकूलता-प्रतिकूलता, यश-अप यश, मान-अपमान यह सभी अवसर आयेंगे ही, पर अपने मूल मार्ग से विचलित न होना ही अपनी गरिमा बनाये रखना है।
विशेष:- हर क्षण आपकी परीक्षा की घड़ी है, आप उसमें क्या करते हैं? वह आपकी स्वयं की ही चुनी हुई राह है, अक्सर कामयाबी की राह बड़ी व बाधाओं से भरी होती है, चुनौतियों से परिपूर्ण होती है, मानवीय जीवन की गरिमा उन चुनौती पूर्ण स्थितियों को स्वीकार कर
उन्हें अपने जीवन का एक अनिवार्य अंग जब हम मान लेते हैं, तो वे चुनौतियां ही हमें गरिमा प्रदान करने लगती है, पूर्ण साहस से उनका सामना करें।
आपका अपना
सुनील शर्मा
जय भारत,
जय हिंद,
वंदे मातरम।
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